मैं और तुम्हारी माँ लता पक्की सहेलियां थीं...मेरे भाई श्याम को लता बचपन से राखी बांधती थीं..लता की शादी के बाद भानुप्रकाश को, मेरा और श्याम भईया का लता से मेलजोल रखना बिलकुल नहीं सुहाता था...वो अकसर लता से हमारे लिए झगड़ता....चौधरी होना उसके लिए बहुत शान की बात थीं....अपने पैसे का...रूतबे का भानुप्रकाश को बहोत घमंड था....गरीब लोगों को कीड़े मकोड़े की तरह समझता था हमेशा...!पर लता ऐसी नहीं थी...वो तो हम दोनों भाई बहन को अपने सगे भाई बहन की तरह समझती थी....
एक दिन तुम्हारे नाना ठाकुर ब्रजमोहन जी की तबियत अचानक बिगड़ गई...आनन-फानन में उन्हें हस्पताल में भर्ती कराया गया....जांच के बाद पता चला कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा था....लता को खबर की गई तो वो तुम दोनो को लेकर मोहननगर आ गई....भानुप्रकाश उस वक्त कहीं बाहर गया हुआ था.... जब वो हवेली पहुँचा, उसे खबर लगी की लता मोहननगर गई हैं.....तुम्हारे नाना की हालत देख लता बुरी तरह से घबरा गई...बचपन में ही माँ का साया उसके सर पर से उठ गया था और बाप को जिन्दगी और मौत के बीच में झुलते देख लता पागल सी हो गई थी....!
एक रोज लता हस्पताल में भागम-भाग करतें हुए चक्कर खा कर गिर पड़ी,भईया ने उसको संभाला....जब उसे होश आया तो वो भईया के गले लग कर रो पड़ी और ठीक उसी समय तुम्हारे पिता और चाचा सुमेर लता के कमरे में दाखिल हुए..!लता और भईया को गले लगें हुए देख भानुप्रकाश और सुमेर दोनों गुस्से से कांप उठे..!लता ने उन्हें समझाने की कोशिश की, पर वे दोनो भाई बहन के पवित्र रिश्ते पर लांछन लगाने से बाज़ नहीं आए! तुम्हारे चाचा सुमेर की नज़र तो वैसे भी लता पर खराब ही थीं...!उसने आग में घी डालने का काम किया.! लता के चरित्र पर लांछन लगाकर यें कहा गया कि, तुम दोनों भानुप्रकाश की संतान नहीं हो..! भानुप्रकाश क्रोध में इतना अंधा हो गया था कि, सोचने समझने की शक्ति ही खो चुका था!वो सिर्फ और सिर्फ लता और श्याम भईया के ग़लत रिश्ते को ही सच मान बैठा था...सुमेर ने उनके मन में ये अच्छी तरह से बिठा दिया था कि तुम दोनो नाजायज़ औलाद हो! सुमेर चाहता था कि लता उसके आगें रोयें गिडगिडाऐ और समर्पण कर दे...! पर लता एक पतिव्रता स्त्री थीं, उसने कष्ट सहना मंजूर किया....सुमेर के ग़लत मंसूबों का अड़ीग रह कर सामना किया..!
सुमेर, लता को सबक सिखाना चाहता था, इसलिए उसने तुम्हारे पिता भानुप्रकाश को तुम दोनों को जान से मारने के लिए उकसाया! भानुप्रकाश, सुमेर की हर उल्टी-सीधी बात को सच मानने लगा..! सुमेर ने उसे इस बात का पूरा भरोसा दिला दिया था कि तुम दोनो लता और श्याम भईया की संतान हो और तुम दोनों भानुप्रकाश की मर्दानगी पर प्रश्नचिन्ह हो! सुमेर चाहता था कि वो तुम दोनों को रास्ते से हटा दे जिससे चौधरी खानदान की पूरी जायदाद का वारिस उसका बेटा मनोहर बनें.!!
सुमेर और भानुप्रकाश,तुम दोनों को मारने का मौका खोज रहे थें...एक रोज सुमेर, तुम दोनों को कपड़े दिलाने के बहाने बाजार में छोड़ आया....वो तो छोटा सा गाँव था,सब जानते थें, इसलिए तुम दोनों सही सलामत वापस मिल गए!एक बार छत पर खेलते खेलते बिट्टू का पैर फिसल गया...निचे गिरा पर किस्मत अच्छी थी जो इतनी ऊंचाई से गिर कर भी वो नीचे खड़े चारे के ट्रक में जा गिरा....
एक रोज़ तुम्हारे दुध में ज़हर मिला दिया गया....वो तो संजोग से वो दुध बिल्ली ने पी लिया.....और बिल्ली मर गई!तब पहली बार लता का माथा ठनका! इतने हादसे ऐसे ही नहीं हो सकते हैं, यें सोंच कर उसने मुझसे सारी बातें सांझी की...मैं भी लता की बात सुन चिंता में भर गई थीं....
उसके बाद से, लता तुम दोनों को एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ती थीं....! परछाई की तरह साथ रहतीं थीं तुम दोनों के....एक दिन नशे की हालत में, लता ने सुमेर के सामने सारी सच्चाई उगल दी....पर लता ने कभी जाहिर नहीं होने दिया कि वो सच्चाई से वाकिफ़ हो चुकी हैं....!
पर शायद किस्मत को कुछ और मंजूर था!उस दिन तुम्हारे नाना की हालत ज्यादा बिगड़ गई...घर पर बस मैं और तुम्हारी माँ थें, तुम्हें मुझें सौंप वो काका सा को हस्पताल लेकर भागी....सुमेर ने इस मौके का फायदा उठाया और तुम दोनों के खाने में बेहोशी की दवा मिला दी....तुम्हारे बेहोश हो जानें के बाद तुम्हें गाड़ी में डाल वो सरयू नदी के तट पर लेकर आया...वो बेफिक्र था कि उसको कोई नहीं देख रहा हैं पर मेरी आँखें तो पल पल उसी पर थी.....मैं मौका देख कर उसकी गाड़ी में छिप गई थीं....और जब वो सुनसान जगह देख कर उतरा और वो बेफिक्र हो शराब पीने लगा..... मैं तुम दोनों को गाड़ी से निकाल कर भागी....पर भागने के पहलें मैने, कपड़ो से बने दो पुतले तुम्हारी जगह सुला दियें थें ताकी सुमेर को शक न हो.....
मुझे कैसे भी करके बस तुम दोनो को बचाना था....मेरी गोद में एक साल की गौरी और तीन साल का बिट्टू नहीं, मेरी सहेली के प्राण थें, उसका मुझ पर विश्वास था...मुझें दोस्ती जैसे पवित्र रिश्तें की लाज़ निभानी थीं....मैं वहाँ से बिना रुके भागी....पुरी रात भागते भागते मैं करीब दो गाँव पार कर आई थीं....और इसमें मेरा साथ दिया, श्याम भईया ने.....मेरे कहने पर वो गाड़ी लेकर मोहननगर की सीमा पर पहलें से ही खड़ा था....तुम्हारा सामान लेकर और मेरे जरूरत का सामान लेकर...!हमने लता के लिए एक गुप्त संदेशा छोड़ दिया था.....!
दरअसल लता को पहले से ही अंदेशा था कि तुम्हारे चाचा कुछ न कुछ बड़ा करने वाले थें...तुम दोनो को मारने के लिए....!!!!हमारी योजना थी कि हम तुम्हें वहाँ से निकाल ले....हम तिनों ने मिलकर जरूरत का सारा सामान पहलें से ही इकट्ठा करना शुरु कर दिया था....बस जरूरत थी तुम्हें वहां से निकालने की और उसके लिए हम मौका खोज रहे थें...! और मौका तुम्हारे चाचा ने ख़ुद दे दिया.....नशे की हालत में और अंधेरे वो समझ ही नहीं पाया कि उसने जिंदा बच्चों को नहीं बल्कि दो पुतलों को जल समाधि दी हैं....!!!
मैं और भईया तुम्हें लेकर दर दर भटकते रहे...!हमें बस कैसे भी करके तुम्हें बचाना था....आखिरकार भागते भागते हम इस गांव में आ गए...हमनें हमारी पहचान बदल दी...नाम बदल दिया....हम दोनों भाई बहन ने दुनिया को यही बताया कि तुम भईया के बच्चे हो और उनकी बीवी की मौत हो गई थी दुसरी जचकी के बाद....और इसीलिए भईया को भाभी के दुख से उबारने हम हमारा गाँव छोड़ यहाँ आकर बस गए...! और बस तब से मैं तुम दोनों की धाय माँ बन गई..!!भईया पट्टे के खेत में काम करते थे और एक दिन खेत में बिज़ली गिरने से वो भी चलें गए.....और तब से मेरा कोई हैं तो तुम दोनों हो.....
अभी कुछ दिन पहलें जब गौरी को लखनऊ से वापस लाने मैं, बिट्टू के साथ लखनऊ गई थी तो वही पर बाजार में मुझे तुम्हारी माँ मिली थीं...हम दोनों एक दुसरे को पलक झपकते ही पहचान गए थें....उसने मुझ से इशारे इशारे तुम दोनों के बारे में पूछा तो मैंने तुम्हारी ओर इशारा कर दिया था....याद हैं तुम्हें, लखनऊ में एक औरत बाजर में चक्कर खा कर गिर पड़ी थी और बिट्टू तूने उसको सहारा दे कर बिठाया था? वो तुम्हारी माँ थी...!!!!गौरी तुझे याद हैं तुने जब उसे पानी पिलाया था तो वो कैसे फूट फूट कर रो पड़ी थी!!तुम्हें लगा था गिरने से चोट लगी और दर्द की वज़ह से रो रही थी....वो अभागन तो बरसों बाद, अपने बच्चों को देखकर और उनको छूकर रो रही थी!!हम वहाँ से निकलने ही वाले थें कि सुमेर आ गया था....और उस धूर्त को शायद यह समझ आ गया था कि लता क्यूँ रो रही थी....!पिछले महीने मेले में, मैंने सुमेर को मंदिर पर मेरी पूछताछ करते हुए देखा था...और तभी से मैं आज के दिन की तैयारी कर रहीं थीं.....कि तुम दोनों को मेरी सच्चाई बताएंगा और वो भी ग़लत तरीके से ....!
बिट्टू तू जाना चाहता हैं तेरे पिता के पास???अब तुम दोनों का जो निर्णय होगा मुझें मंजूर होगा...! मेरी तरफ़ से तुम दोनों आजाद हो! मैं तुम्हें नहीं रोक सकतीं!
इतना बोल धाय माँ उठ कर जाने लगीं तो गौरी ने कहा....माँ....हम जाएंगें लखनऊ....!!!गौरी की ओर देखते हुए धाय माँ ने कहा....ठीक हैं....जब जाना चाहों बता देना!पर माँ पूछा नहीं आपने कि क्यूँ जाना चाहतीं हूँ??प्रश्नवाचक नज़रों से बिट्टू और धाय माँ दोनो ने गौरी की ओर देखा??माँ हम वहाँ उन चौधरियों को बेनकाब करने जाएंगे...!हमारी जन्मदात्री को उन पिशाचों के चंगुल से मुक्त कराने जाएंगें..!हम हमारे होने का प्रमाण और हमारे आस्तित्व की जड़ें खोजने जाएंगें और हम उन गुनहगारों को सज़ा दिलाने जाएंगें...!!
गौरी ने आगे कहना जारी रखा....माँ तुम्हारे आँचल में जितने छेद हुए हैं ना....उतने ज़ख्म उस भानुप्रकाश और सुमेर को मिलेंगे अब..!!!मैं आपका, श्याम काका का, बिट्टू भईया का और मेरी जन्मदात्री का कर्ज चुकता करूँगी अब....!!यें मेरा संघर्ष....अब तब पुरा होगा जब मैं गुनहगारों को जेल के पीछे देखूंगी...!!अब यें दुनिया देखेंगी....एक बेटी किस तरह अपने अस्तित्व के लिए, अपने माँ की गरिमा और चरित्र पर लगे दाग़ को मिटाने के लिए अपने बाप से बदला लेंगी.....!!!अब न्याय मिलेगा....हर एक को...!!हर ग़लती की सज़ा मिलेंगी....!हर बात का जबाव मिलेंगा....!!!गुस्से से मुट्ठी भींच कर गौरी ने कहा.....!!!
धाय माँ और बिट्टू दोनों, गौरी का यें रूप देख चकित रह गए...!!!!और गौरी.....उसका चेहरा अजीब से विश्वास से चमक रहा था..!!!
गौरी कैसे अपनी माँ का बदला लेंगी? कैसे अपने और अपने भाई के साथ हुए अन्नाय का बदला लेंगी?
जानने के लिए पढिए अगला भाग....
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धन्यवाद
✍✍मौलिक एवं स्वरचित वर्षा अग्रवाल द्वारा 🙏🙏🙏🙏
क्या बात है 👌
ReplyDeleteThanks alot🙏🙏🙏🙏
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