बड़ी हवेली के मालिक, ठाकुर अखिलेश प्रतापसिंह, कहते हैं ठाकुर सहाब जो ठान लेते हैं वो करके ही दम लेते हैं! जुनून और जिद्द का दुसरा नाम हैं, ठाकुर अखिलेश प्रतापसिंह!जैसा नाम वैसी किर्ती..!!!आस पास के दस गाँव में, ठाकुर अखिलेश प्रतापसिंह जैसा व्यक्तिव किसी का नहीं हैं.....
उस दिन, ठाकुर अखिलेश प्रतापसिंह के अभिन्न मित्र, नंदकिशोर वर्मा....लखनऊ से गुमानपुरा आए थें.....गुमानपुरा की आबोहवा में, किशोर बाबू खो गए....!!एक अनोखी ताजगी, महक और स्फूर्ति महसूस की उन्होंने...!!
शहर के लोग जब भागदौड भरी जिंदगी से थक जातें हैं और ऊब जातें हैं, तब उन्हें सुकून भरे लम्हों की तलाश होती है और गुमानपुरा...सुकून का दूसरा नाम हैं, यें वो अच्छी तरह समझ चुके थें.....!गाँव में मिट्टी में शहर जैसी मिलावट नहीं होती ना इसीलिए, किशोर बाबू के दिमाग में यहाँ पर एक पाँच सितारा होटल बनाने का विचार कौंधा..!
दो चार दिन अच्छी तरह से सारे गाँव की भौगोलिक स्थिति की जांच परख करने के बाद, किशोर बाबू ने, ठाकुर सहाब के सामने प्रस्ताव रखा....और ठाकुर सहाब उनके प्रस्ताव से सहमत भी हो गए थें....गाँव के उत्तर पश्चिमी सीमांत पर होटल बनाना निश्चित हुआ...पर समस्या यें थी कि वो क्षेत्र उपजाऊ भूमि के अंतर्गत आता और होटल बनाने के लिए कम से कम पाँच सौ एकड़ भूमि की आवश्यकता थीं...और पूरी भूमि पर गाँव के किसानों की खेती थीं....जिस पर उनकी गुज़रबसर होती थीं !!!
अब गाँव वालों को कैसे मनाया जाएं इस बात पर ठाकुर सहाब और किशोर बाबू दोनों गहन मंत्रणा कर रहे थे.....
किशोर बाबू, इन गाँव वालों को मनाना इतना आसान नहीं है!!!यें इस भूमि पर सदियों से अन्न उगा रहे हैं....इतनी आसानी से यें लोग अपनी आजीविका का सौदा नहीं करेंगें....!!!!
हममम.....बात तो सौ आने सही हैं आपकी ठाकुर सहाब!!पर कोई ना कोई उपाय तो जरूर होगा!!कैसे भी करके हमें दो चार लोगों को तोड़कर हमारी तरफ करना होगा...!एक बार उन्होंने हमारी बात का समर्थन कर दिया ना....तो फिर बाकी लोग भी टूट ही जाएंगें...!!!
पर क्या करें????ठाकुर सहाब ने अपनी पेशानी पर ऊँगली फिराते हुए कहा.....
शायद मैं आपकी मदद कर सकता हूँ पापा......!!!!
ठाकुर साहब और नंदकिशोर जी दोनों ने दरवाज़े की तरफ़ देखा.....एक पच्चीस छब्बीस साल का युवक...ब्ल्यू जींस और वाईट टी शर्ट में आँखो पर सनग्लासेस लगाए खड़ा था....!!!
ओहो.....छोटे ठाकुर....!!!!
ठाकुर आशुतोष प्रतापसिंह.....दिल्ली से M.B.A की पढ़ाई कर तीन साल बाद लौटा था.....लंबे कद का सुदर्शन युवक...हसमुख चेहरा...बड़ी हवेली का इकलौता वारिस..!!!
छोटे ठाकुर आ गएएएएएएए......छोटे ठाकुर आ गएएएएएए....पुरी हवेली में गूंज उठा!!!!!
आशुतोष भागकर ठाकुर साहब के पैर छूता हैं....ठाकुर सहाब उसे कस के गले से लगा लेते हैं.....
इतनें में ठाकुर सहाब की धर्मपत्नी प्रभादेवी आरती का थाल लिए बैठक में दाखिल होती हैं....!!!!
मेरा बेटा आ गया....!!!!मेरा आशुअअअअ.....!!!मेरे लाल....!!!!प्रभा देवी आशुतोष की आरती उतराती हैं और नज़र उतार पैसे नौकर को दे देती हैं....
आशुतोष, माँ के पैर में झुकते ही कहता है, माँ जल्दी से आशीर्वाद दे दो...वरना तुम अभी आशीर्वादों की झड़ी लगा दोगी....मेरी कमर ज्यादा देर झुकी रही तो अकड़ ही जाएंगी बेचारी.....!जल्दी से पापा की तरह आशीर्वाद का कार्यक्रम शार्टकट में निपटा दो....!!
अच्छा ड्रामेबाज!!!!....चलो चलो सीधे खडे हो जाओं ...हमारा आशीर्वाद आपके साथ ही हैं हमेशा...प्रभा देवी ने छोटे ठाकुर के सर पर हाथ फेरते हुए कहा
और मुझे यें अच्छें से पता हैं कि आप दोनों का आशीर्वाद हमारे साथ हैं हर कदम.....तभी तो हमनें पुरे कालेज में टॉप किया हैं.....अब हम एक ऐसा बिजनेस सेटअप करेंगे कि गुमानपुरा का नाम पूरे भारत में मशहूर हो जाएगा!!
और आप दोनों कहीं भी जाऐंगे न, तो लोग कहेंगे वो देखों गुमानपुरा के आशुतोष प्रतापसिंह के माता-पिता जा रहें हैं....हमारे नाम से आपकी पहचान बनेंगी....बहुत जल्द ...!!!!
बिलकुल बनेंगी बरखुरदार...!!!!तुम हो ही इतने क़ाबिल और होनहार..!!! नंदकिशोर जी ने कहा.....
शुक्रिया काका सा.....!!!
माँ, मुझे बहोत जोर की भूक लगीं हैं ....जल्दी से मेरे लिए तुम्हारे हाथ की पुरी सब्जी बना दो...!!!!कम से कम पचास पुरी बनाना.....तीन साल की कसर पूरी करनी हैं....!मैं बस दस मिनट में आता हूँ...!!!
हाँ.... हाँ .....आप पचास क्या सौ पुरी खाना....पर फिर मुझसे हाजमे वाली गोली मत माँगना......
हा हा हा हा हा हा हा.....सब लोगों की हँसी से बड़ी हवेली गूंज उठी....!!!
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गौरी......ओ गौरी.....बेटा कहाँ हैं तू....????धाय माँ ने गौरी को आवाज़ दी.....
आईईईईईईई माँ......
बोलो माँ....क्यूँ बुलाया??
गौरी....बिटिया यें आचार की बरनी बड़ी हवेली दे आ ना...ठकुराईन जितना पैसा दे ले लेना.....कोई मोलभाव मत करना....और वो देख वहाँ उस थाल में मठरी बना कर रखी हैं....सुना हैं, छोटे ठाकुर साहब शहर से वापस लौट आए हैं, उन्हें मठरी बहोत पसंद हैं....उस थाल की आधी मठरी छोटे ठाकुर साहब के लिए ले जा...!
और सुन सलीके से जाना....वो नया वाला सलवार कमीज निकाल ले....और सबके पैर छूना वहाँ....ठकुराइन को मेरा प्रणाम बोलना....और वहाँ धीरे-धीरे बात करना.....औरररररर......धाय माँ की बात काटते हुए गौरी ने कहा.....
ओ हो माँ.....बड़ी हवेली भेज रहीं हो या ससुराल जो ये करना...वो करना...की फेरहिस्त सुनाए जा रही हो??मैं ना जैसे अभी यहाँ हूँ वैसी ही वहाँ रहूँगी....मुझ से नहीं होता यें ज्यादा सभ्य और संस्कारी बनने का ढोंग....!!!
हे भगवाननननन....गौरी गुस्सा तो तेरी नाक पर रहता हैं....!!!!जा तुझे जो करना हैं कर...!किसी की सुननी तो हैं नहीं तूने....!!
सुनती हूँ...हमेशा सुनती हूँ पर बस ग़लत नहीं सुन सकती हूँ ना सह सकती हूँ!!!!!अब तुम्हारा डांटना हो गया हो....तो तैयार हो जाऊँ....मेरे ससुराल यानी की बड़ीईईईईईई हवेलीईईईईईई.....जाने....!!!!
रूक जा मैं बताती हूँ तुझे.....मेरा मजाक उड़ायेगी....????
आए हाए माँ.....तुमको कैसे उड़ा सकती हूँ....????तुम तो कम से कम सौ किलो की हो...!!!!धाय माँ की नकल करते गौरी ने कहा
ठैर....तू ठैर बसस.....!!!!!मेरे से मस्खरी...???
हाँआआआआआ....तुम्हारे से मस्खरी....क्यूँकि तुम मेरी माँ हो....और कोई बोल के तो दिखाएं तुम्हें कुछ...जुबान खिंच लूँगी....!!!धाय माँ के गले में झुलते हुए गौरी ने कहा
जा ना गौरैया....जल्दी से देकर आजा....और देख ज्यादा देर रूकना नहीं....
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गौरी, जैसे ही बड़ी हवेली के नजदीक पहुँचती हैं, उसे गोली चलने की आवाज़ सुनाई देती है.....और एक कबूतर ...उसके सामने आकर गिरता हैं...!!!गौरी भाग कर उस कबूतर को उठाती हैं.....इतने में वहाँ, हवेली का एक नौकर आता हैं...
ए लड़की..!!इस कबूतर का शिकार हमारे छोटे ठाकुर साहब ने किया हैं, ये हमारा हैं.....चल दे दे हमें!!!
गौरी उसकी बात को अनसुना कर, उस कबूतर के जख्मो को साफ कर थोड़ी सी मिट्टी लगा देती हैं और उस कबूतर को वापस उड़ा देती हैं.....!!!
पागल लड़की यें क्या किया तूने????छोटे ठाकुर साहब का गुस्सा तुम नहीं जानतीं....मेरी तो नौकरी खतरे में पड़ गई है तेरी वजह से......
नौकरी की इतनी ही चिंता हैं, तो रोका क्यूँ नहीं छोटे ठाकुर साहब को???इतने तो ना समझ नहीं होंगे वो कि अच्छें बुरे की समझ ना हो!क्या सोंच कर इस बेजुबान पर गोली चलाई??भगवान ने बुद्धि के नाम पर क्या उपर वाला माला....खाली छोड़ दिया हैं???
ए लड़की चुप हो जा!!!किसी ने सुन लिया तो तेरी खैर नहीं????चुपचाप निकल जा यहाँ से....
और सुनो....जैसे की मैं तुम्हारी बात से डर ही जाऊँगी....अपने मन से आई हूँ....अपने मन से जाऊंगी....तुम्हें इतना डर हैं उस छोटे ठाकुर से तो जाओ और बोल देना पक्षी दिखा ही नहीं...!!!जाओ अबबबब......गौरी ने कहा
क्या पागल लड़की हैं...बिना मतलब की मुश्किल में फंसा दिया... क्या जबाव दूँगा छोटे ठाकुर साहब को.....बडबडाते हुए वो नौकर हवेली के अंदर चला गया....
गौरी ने अपना सामान उठाया और हवेली के दरवाज़े पर आ गई....वहाँ खड़े दरबान से उसने कहा....
काका सा....धाय माँ ने भेजा हैं...बड़ी काकी सा को यें सामान देना हैं..!!!
धाय माँ ने भेजा हैं तुमको.....!जाओ बिटियाँ....ठकुराईन के कमरे में चलीं जाओ....रूको हम किसी को साथ भेज देते हैं तुम्हारे...!!!
रज्जों.....ओ रज्जों....तनिक ईहा आओ बिटिया...!
का हुआ दरबान दादा...? काहे बुलाया हैं? मालकिन के पास जा रहें थे ना....अब हमका टोक दिया तुमने...हमारा किमती बख्त खराब कर दिये.....दरबान काका और गौरी दोनों उसकी तरफ आँखें फाड़ फाड़ कर देखे जा रहें थे.....
अब बोलो भी दद्ददददाआआआ.....का टुकुर टुकुर देख रहें हो????
देख रहा हूँ, तो बोलती हुई कितनी अच्छी लगती हैं.....थोड़ी देर चुप रहेंगी तो और अच्छी लगेगी...!!!
हाए सच्ची का??? अब हम चुप रहेंगी....!!!!पर ई तो बता दो....हमसे का काम था तुमको दद्दा...????
ई धाय माँ की बिटिया हैं....मालकिन से मिलने ख़ातिर आई हैं.....तनिक ईका मालकिन के पास ले जाओ!!!
बसससससस....इत्ती सी बात????इत्ती सी बात कहने में दादा तुम पुरा आधा घंटा लगा दियें....हमारा इत्ता किमती टेम बरबाद कर दियें .....चलो गुडिया रानी... तुमको मालकिन के पास लिए चलतें हैं....!!
गौरी, रज्जो को आँखे फाड़ फाड़ कर देखे जा रही थी.....रज्जो अचकचा कर बोली....चलो भी अब....हमको देखने थोड़े ही आई हो????
रज्जो की बात पर गौरी और दरबान दादा दोनो हँस पड़े और गौरी अपना सामान उठाएं रज्जो के साथ हो ली....!
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रज्जो गौरी को ठकुराईन के कमरे में लेकर आतीं हैं.....और कहती है, बैठो तुम बिटिया....हम बताते हैं जाकर मालकिन को...वो रसोई में हैं...!!!ऊ का हैं ना, छोटे ठाकुर आए हैं ना....उनके लिए खाना बना रहीं हैं वो....लाड़ले बेटे जो हैं......
रज्जो और कुछ कहतीं उसके पहले गौरी ने कहा, एक ग्लास पानी मिलेंगा???
हाँ.....अभी लातें हैं....!!
शुक्र हैं ये गई तो सही...!!!!
थोड़ी देर में, बड़ी हवेली की मालकिन.....प्रभा देवी कमरे में दाखिल होती हैं.....
गौरी उन्हें देख आगे बढ़कर उनके पाँव छूती हैं.....काकी माँ हम धाय माँ की बेटी हैं....गौरी.....
ओ हो....तो गौरी हो.....?पुरे गुमानपुरा में आपकी नेकदिली के चर्चे है...!!! कहीं बाहर रहतीं थी ना आप??
जी काकी माँ....लखनऊ रहते थें....वकालत की पढाई पूरी हो गई हैं हमारी....बस थोड़े वक्त में हम वकील बन जाएंगे....!
यें तो बहुत अच्छी बात हैं बेटा.....तुम पहली लड़की हो गुमानपुरा में जो वकील बनेंगी...!!आगें क्या करने का सोचा हैं...
काकी माँ...हम न्यायाधीश बनेंगे....हम न्यायिक परीक्षा की तैयारी कर रहें हैं....!!!अच्छा काकी माँ, माँ ने आपके लिए यें आचार और छोटे ठाकुर साहब के लिए यें मठरी भेजी हैं.....
अच्छा किया जो धाय माँ ने आचार और मठरी भेज दी...रज्जो इनसे ये ले लो.....थोड़ा सा एक कटोरी में निकाल कर पहले ठाकुरजी के भोग लगा दो...और फिर छोटे ठाकुर साहब को परोस दो....आचार और मठरी दोनो.....और सुनो एक थाल और लगा कर लाओं.....गौरी के लिए....
नहींईईईई...काकी माँ....हम खाना नहीं खा सकते हैं...!!!परेशान होते हुए गौरी ने कहा
क्यूँ?? कोई दिक्कत हैं??ठकुराईन ने पूछा
काकी माँ....माँ ने हमारे लिए खाना बनाया हैं घर पर अगर हमनें नहीं खाया तो माँ की इतनी मेहनत बेकार जाएंगी और खाना भी!!!सिर झुकाए गौरी ने कहा
गौरी की बात सुन, रज्जो हो हो कर हँस पड़ी...
ठकुराईन ने रज्जो को आँखे दिखाई और मुस्कुराकर गौरी से कहा....तुम सच में शहर से पढ़कर आई हो क्या????ठकुराईन ने गौरी से पूछा....क्यूँ कि आजकल के बच्चे इतना कहाँ सोचते हैं??? और तुम अब नहीं खाओगी तो हमें बुरा लगेंगा कि इतनी प्यारी बच्ची को हमनें ऐसे ही भेज दिया....!तो खाना तो तुम्हें खाना ही पड़ेगा....तुम्हारी माँ के हाथ का खाना तुम रोज खाती हो आज इस माँ के हाथ का खाना खा लो....!!
जा रज्जो जल्दी से हमारी प्यारी सी बेटी के लिए थाल लगा कर लाओं.....
जी मालकिन.....कह कर रज्जो बाहर निकल गई....
अच्छा गौरी और बताओं तुम क्या क्या कर लेती हो....
बस काकी माँ, ज्यादा कुछ नहीं...सिलाई, कढाई, बुनाई और हमें भजन गाने का बहुत शौख हैं....!!
अरे वाह!!!!तुम तो बहुत गुणी हो...!!!
अच्छा तुम दो मिनट दो हमें हम आते हैं.....कुछ देर में ठकुराईन एक कपड़ा लेकर आती हैं....गौरी....यें कपड़ा देखो और बताओं इसे हम कैसे इस्तेमाल करें??? इतना ही कपड़ा हैं पर काफी महंगा हैं....प्योर सिल्क हैं....
गौरी ने कपड़े को हाथ में लेकर देखा.....
काकी माँ आपके पास लेस हैं क्या???
हाँ हाँ हैं ना....
तो हमें दे दीजिये...
थोड़ी देर में गौरी उस कपड़े की भगवान की पोशाक बना देतीं हैं.....और लेस लगाने लगती हैं.....सुई धागा लेकर
अरे वाह!!!!!कमाल कर दिया तुमने तो.... !!!!!काकी माँ गौरी को और कुछ कहने ही वाली थी कि इतने आशुतोष गुस्से से भुनभुनाते हुये कमरे में दाखिल हुआ
Useless.....bloody cheaper!!!!!सब के सब निकम्मे हैं....कैसे कैसे लोगों को नौकरी पर रखा हुआ हैं आप लोगों ने माँ..... किसी काम के नहीं हैं....!!
अररररररे क्या हुआ....क्यूँ गुस्सा कर रहे हैं आप इतना???
तो क्या करूँ गुस्सा नहीं करूँ तो....!!!हमनें एक कबूतर पर निशाना लगाया था....वो कबूतर गिरा भी पर एक Stupid....non sense लड़की ने उसको उड़ा दिया.....हरीया चुपचाप देखते रहा....मन तो कर रहा हैं उस लड़की और हरीया....दोनों को गोली मार दूँ!!!I am damn pissed off maaa.......!!!!
गौरी, छोटे ठाकुर का सारा तमाशा देख रही थी.....अचानक से वो उठी और उसके हाथ में जो सुई थी....छोटे ठाकुर को चुभ दी उसने.....!!!!
आईईईईईई......have u gone mad...???? Are you out of your senses......मतलबबबब......तुम हो कौन????माँआआआआ....कौन हैं यें पागल लड़की????
No I am not mad.....I am in my full sense....I just want you to feel pain.....See how much you are screaming.....!!!!!..कितना चिल्ला रहे हैं ना आप एक सुई के चुभने से.....सोंच कर देखिए आपने उस बेजुबान पक्षी पर गोली चला दी!!!!सिर्फ आपके शौक को पूरा करने के लिए!!!!उसको तो इससे कहीं ज्यादा दर्द हुआ होंगा......पर वो तो किसी से कुछ कह नहीं सकता ना....तो आपको उस का दर्द कैसे समझेंगा????
ए लड़की....!!!!माफ़ी मांग अभी के अभी....पीछे खड़ा हरीया चिल्लाया.....
किस लिए माफ़ी????मैं ग़लत नहीं हूँ....!!!! गौरी ने संयत और शालीन तरीके से जवाब दिया....
सही ही तो कहा गौरी ने, आशुतोष आपने गलत किया....दुबारा किसी बेजुबान को अपने शौक की बली मत चढ़ाना!!!!!ठकुराईन ने छोटे ठाकुर को कहा
काकी माँ, यें लीजिए....हो गई यें पोशाक.....अब चलती हूँ मैं.....
रज्जो वो थैली, गौरी को दे दे.....!!!और गौरी यें आपकी माँ को दे देना....गौरी के हाथ में पैसे पकड़ाते हुए, ठकुराईन ने कहा....
आशुतोष, गौरी को घूर घूर कर देखे जा रहा था और गौरी बिना उसकी तरफ़ ध्यान दियें, ठकुराईन के पैर छू कमरे से बाहर निकल गई.....!!!
आगे गौरी की जिन्दगी में क्या होने वाला है???क्या ठाकुर अखिलेश प्रतापसिंह किसानो की जमीन पर होटल बना पाएंगे????क्या आशुतोष, गौरी से बदला लेगा...????इन सब बातों का जवाब आने वाले अंक में......
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✍✍मौलिक एवं स्वरचित वर्षा अग्रवाल द्वारा