Wednesday 16 September 2020

कुबेर का खज़ाना

                       "कुबेर का खज़ाना" 




माँ ओ माँ....मेरी अच्छी माँ....दुलारी माँ......प्यारी प्यारी माँ.....!


अरे....बसससस.....बोल क्या चाहिए? 


होओओओओ....माँ तुम्हें प्यार करूँ तो क्या जरूरी हैं कुछ चाहिए ही मुझे? क्या मैं ऐसे ही प्यार नहीं करती तुम्हें....? जाओ नहीं बोलती मैं आपसे....राधा ठुनकते हुए बोलीं  


होओओओओ....तो क्या मैं तुझसे मजाक नहीं कर सकती?जा अब मैं नहीं बोलती तुझसे!सुमित्रा जी ने झूठा गुस्सा करते हुए कहा


ओह....मेरी बिल्ली मुझको ही म्याऊँ.....!राधा हँसते हुए बोलीं 


माँ बेटी की नोक झोंक हो गई हो....तो निकलूं मैं अब...? भाई मुझे भी काम पर जाना हैं...पहले ही इस करोना की वजह से चार महीनों बाद आज जा रहा हूँ....लेट नहीं होना चाहता....!


पापा मुझे समीक्षा के छोड़ दो न...!हम दोनों साइंस का अगला चैप्टर करने वाले है आज...!


चल....!


अच्छा माँ आती हूँ.....! चार बजे तक....!


अरी सुन तो...तू कुछ बोल रही थी ना? बोल ना क्या चाहिए तुझे....!


अभी अब जाने दो....माँ....शाम को बात करती हूँ....!


ऐसी भी क्या पढाई राधा...जो तू पिछले एक महीने से रोज समीक्षा के जाती है.....मुझे तो तू भूल ही गई है जैसे....?शिकायत भरे लहजे में, सुमित्रा जी ने राधा को कहा....


ओ हो माँ....!आप भी ना...!स्कूल तो बंद हैं, तो सेल्फ स्टडीज करना पड़ रहा है....फिर बिना पढ़े मन भी तो नहीं लगता....स्कूल वालों ने साढ़े चार हजार की बुक्स पकड़ाई है तो कम से कम कुछ तो पढ़ा जाएं.....!


हाँ ना राधा....!एक तो लाकडाउन, तेरे पापा की कोई इन्कम नहीं ....उपर से ये बुक्स लेना कम्पलसरी कर दिया स्कूलों ने.....चाहें पढ़ाई हो या ना हो....!लगता ही नहीं इस साल स्कूल खुलेंगें भी या क्या...! बड़ी मुश्किल से कैसे भी करके घर ख़र्च चला रहे थे...अब तो इस महीने का राशन भी कैसे आएगा यहीं सोंच है....!


ओ हो सुमित्रा....!क्या सुबह सुबह बेकार की बातें कर रही हो....???बेटा तू चिंता मत कर...!मेरे पास बहुत पैसे है....कल परसो में राशन भी लाँऊगा और तुम दोनो के लिए आइस्क्रीम भी....!


पर पापा.....


तू पर वर छोड़ और चल जल्दी से.....! मैं हूँ ना.....!शाहरुख़ खान के अंदाज में जतिन जी ने कहा.....तो दोनों माँ बेटी खिलखिलाकर हँस पड़ी.....


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उसी रात को,


सुनों जी....इस महीने का खर्च कैसे चलाएंगे?? बस दो तीन दिन का राशन हैं अब...!मैं सोंच रहीं थी के मेरे कान के बूंदे बेच दूँ....!धीरे-धीरे फुसफुसाते हुए सुमित्रा जी ने कहां 


नहीं सुमित्रा....ऐसा सोंचना भी मत...!मैं कुछ न कुछ करता हूँ...!किसी से उधार लेता हूँ...!आज सेठ बोल रहें थे कि दो तीन लोगों की छटनी करेंगे....मेरा तो कलेजा मुंह को आ गया उनकी बात सुन कर!अगर मुझे भी निकाल दिया दो? 


शुभ शुभ बोलो जी....!हे भगवान ऐसा कुछ मत करना....वरना क्या होगा हमारा....आपसे तो कहा था, इतने महंगे स्कूल में मत दिलाओ दाखिला राधा को....पर आप ने एक ना सुनी मेरी.....!अब क्या करेंगे हम.....सुबकते हुए सुमित्रा जी बोली


राधा की माँ....एक ही तो औलाद है हमारी इसके लिए क्या मैं इतना भी नहीं कर सकता हूँ....उसने हमेशा दिल लगा कर पढ़ाई की है....दसवीं में तो मेरिट लिस्ट में नाम था हमारी राधा का......और अब तो बारवी का साल है उसका...मैं उसे किसी तरह की कोई टेंशन नहीं देना चाहता.....!सब ठीक ही चल रहा था....वो तो ये करोना की वजह से....इतनी दिक्कत आ गई है....पर तुम हौसला रखों सब कुछ ठीक हो जाएगा.....!चिंता भरे लहजे में, जतिन जी ने कहा


उस ईश्वर पर विश्वास रखों.....परेशान न हो और सो जाओ....!वो सब ठीक करेगा.....!सुमित्रा जी ने कहा



हममममम.....!


आने वाले कल की चिंता में , दोनों पति पत्नी के आँखों से नींद कोसों दूर थीं...!

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अगली सुबह,


पापा.....ओ पापा......!


क्या हुआ मेरी राजकुमारी को.....?चाय पीते पीते जतिन जी ने पूछा  


पापा मुझे सौ रूपये चाहिए.....!


राधा की बात सुन, जतिन जी के हाथ से कप छूटते छूटते बचा....!


स....सौ रूपये...! क्यूँ चाहिए बेटा....?


पापा हमें ना एक सर टयूशन पढ़ा रहे हैं मैथ्स की...!उन्होंने कहा की वो मुझे और समीक्षा को कम रेट में पढ़ा देंगे....अभी लाकडाउन में खर्च उठाने उन्हें टयूशन चाहिए थी....वो अपने घर में एकलौते कमाने वाले है....!कल भी उन्होंने क्लास ली थी....तो उनके ही नोट्स बनाने मुझे एक रजिस्टर खरीदना है......जल्दी से दे दो ना सौ रूपये....अच्छा आप बैठो मैं ही ले लेतीं हूँ....!


अरी राधा सुन तो.....!सुमित्रा जी ने कुछ कहना चाहा 


नहीं ना माँ....अभी टाईम नहीं है कुछ सुनने का....


पापाआआआआ......आपकी जेब से सौ रूपये लिए है....और बाकी के सारे पैसे वापस रख दिये हैं संभाल कर.....देख लेना आप......!!जतिन जी को आवाज़ देते हुए, राधा ने कहा


राधा की बात सुन, जतिन जी और सुमित्रा जी दोनों चौंक पड़े और आँखों - आँखो में एक दूसरें को देखा....सुमित्रा जी जाकर जतिन जी का पर्स ले आई.....!


जतिन जी ने पर्स खोला....उसमें पाँच हजार रुपये थे और एक चिट्ठी.....


"पापा, 


आपकी बेटी के होते, ना आपको उधार मांगने की जरुरत पड़ेगी....ना माँ को अपने बूंदे बेचने की..!ये मेरी जिंदगी की पहली कमाई है पापा....चाहती थी आपके और माँ के हाथ पर रखूँ...!पर...मुझसे आपकी आँखो के आँसू देखे नहीं जाते इसलिए....बस यही एक तरीका समझ आया.....!


माँ,


यही बताना चाहती थी कल,समीक्षा को और चार और सहेलियों को टयूशन दे रही हूँ....मैथ्स और साईंस की.....पिछले महीने से....और उन्होंने एक एक हजार रुपये दियें हैं....!पूरे पाँच हजार रूपये है माँ.....!अब तुम जानो और तुम्हारा घर ख़र्च....हाँ....आज शाम को खीर बना लेना....भगवान को भोग चढ़ाने.....!


चिठ्ठी पढ़ने के बाद, जतिन जी और सुमित्रा जी दोनों की आँखो से आँसुओ की अविरल धारा बह उठी....!


   

गर्व से सीना तान के जतिन जी ने कहा, देखा सुमित्रा....मेरी बेटी ने उसके बाप की जेब को कुबेर का खजाना बना दिया है...!!!अब हमें कभी कोई दिक्कत नहीं आएंगी....कभी भी नहीं.....शायद इसीलिए लोग कहते हैं....."बेटियाँ लक्ष्मी होती है"....भले ही बाप के घर उनका बसेरा कुछ ही दिनों का होता है.....पर बेटी....बेटी होती है....!


मौलिक एवं स्वरचित रचना,


✍✍नेहा चौधरी की क़लम से🙏🙏


Saturday 12 September 2020

पवित्र बंधन



 नयन......!जोर से चिल्लाई, सुधा जी....तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई....इतनी घटिया बात सोंचने की....???


चिल्लाओ मत माँ....!तुम्हारे चिल्ला ने से हकीकत नहीं बदल जाएंगी.....उम्र देखी है तुमने अपनी....इस उम्र में तुम ये सब कर रहीं हो....!इतनी बेशरमी कहां से आ गई तुम में माँ....?इस सुकेश साहनी की वजह से तुम इस बेशर्मी पर आई हो न....? इसको तो मैं अभी के अभी पुलिस के हवाले करता हूँ.....!इसकी बेटी को बुलाया है मैंने....वो भी तो देखे अपने बाप की करतूत को....!


मुझे तो यकीन ही नहीं था कि तुम ऐसी ओछी हरकत करोगी....जब जीतू ने मुझे बताया कि तुम यहाँ रह रहीं हो...तो मुझे लगा वो मज़ाक कर रहा है....पर फिर उस दिन तुम्हें वीडियो काल किया तो सब समझ आ ही गया मुझे....माँ तुम ऐसा कैसे कर सकती हो...?तुमने एक बार भी मेरे बारे में नहीं सोंचा....अपनी बहू के बारे में नहीं सोचा.....क्या जवाब दूंगा मैं दुनिया को..??आपका और इस सुकेश साहनी का क्या रिश्ता है.....!तुम ने तो मुझे जीते जी मार डाला माँ......!


अभी के अभी चलो मेरे साथ.....!मैं एक पल के लिए भी तुम्हे यहाँ नहीं छोड़ूगा अब....समान पैक करो अपना......गुस्से से थरथराते हुए नयन ने कहा 


और ये आपसे किसने कहा कि माँ आपके साथ आ रहीं है.....नयन ने चौंक कर गेट की ओर देखा.....


एक तीस वर्षीय युवती खड़ी थी......वो धीरे-धीरे भीतर आई.....


हैलो मिस्टर नयन माहेश्वरी....मैं सुदिप्ता.....डाँ.सुदिप्ता साहनी....और इस वक्त मेरे घर में खड़े होकर आप....मेरी माँ पर और मेरे बाबा पर चिल्ला रहें है....मैं चाहूँ तो अभी के अभी असाॅलट के जुर्म में आपको अरेस्ट करवा सकती हूँ.....!


सुदिप्ता की बात बींच में काटते हुए, नयन ने कहा....excuse ji ma'am ....शायद आप ये भूल गई है कि ये मेरी माँ है....और इन्हें आपने जबरन अपने घर में रख रखा हैं....!तो ये पुलिस की धमकी....आप को मैं भी दे सकता हूँ.....


हा हा हा हा हा हा ह....I think you are stupid.....!चलो मान लिया कि सुधा माँ को हमने जबरन अपने घर में रख रखा हैं.....पर क्या आप इस जबर्दस्ती का कारण नहीं जानना चाहते हैं....??


क्या कारण हैं....साफ साफ दिख रहा है.....आपको भी दिखा दूँ....एक विधवा की मांग में सिंदूर, ये भरी भरी   चूड़ीया....और ये साज श्रृंगार.....मेरी माँ को बुढ़ापे में जवानी फूट रहीं हैं.....!तंज कसते हुए नयन ने कहा  


तड़ाक....!!!!जोर का थप्पड़ पड़ा नयन के गाल पर.....


मिस सुदिप्ता.......!!!Have u lost your senses......How dare u to slap me....????


मुझमें हिम्मत भी हैं....और हक भी हैं थप्पड़ मारने का.....क्यूँकि आप जिसके लिए बात कर रहे है वो मेरी माँ है.....मिसेस सुधा साहनी....!आपने इनका साज श्रृंगार देखा पर....जो देखना चाहिए वो ही नहीं देखा.....कहते हुए सुदिप्ता, सुधा जी की सारी को थोड़ा उपर कर देती है......!!


नहींईईईईईई......माँआआआआआ.....माँ ये क्या हैं माँ....?कब हुआ ये....?तुम्हारे पाँव.....जयपुर फुट.....ओह माँ कब हुआ ये... माँ कब हुआ......सुधा जी को गले लगा, नयन रो पड़ा


ये तब हुआ मिस्टर नयन जब आप माँ को छोड़ लंडन जा बसे थे....आपने सोंचा तक नहीं कि अकेली जान कैसे जीएगी...?किसके सहारे जी पाएँगी....?सुदिप्ता बोली


याद है नयन, आज से चार साल पहले, मैंने तुझे कितने काल्स किये थे....उन दिनों मैं डेंगू की चपेट में आ गयी थी....शरीर में रत्ती भर हिम्मत नहीं बची थी....कि डाक्टर को दिखा सकूँ या दवा पानी कर सकूँ....कैसे भी कर के एक दिन घर से निकली थी पर कमजोरी की वजह से चक्कर खा कर गिर पड़ी....बींच सड़क....!पीछे से आते मेटाडोर ने मेरे पैर के उपर से.....कहते-कहते सुबक पड़ी सुधा जी....!


इनको मेरे हास्पीटल जिस हालत में लाया गया था, वो मैं बयां नहीं कर सकती हूँ....दस घंटे के आपरेशन के बाद इनको बचाया जा सका था....पर शुगर पेशेंट होने की वजह से इनके पैर को काटना पड़ा था....!सुदिप्ता ने सुधा जी के आँसू पोंछते हुए कहा....


हाँ....जानते हो नयन मैं तो जीना ही नहीं चाहती थी...पर ये बच्ची मुझे अपने घर यहाँ लेकर आ गई....इसने और साहनी जी ने मेरी इतनी सेवा की जितनी मेरा कोई सगा भी नहीं करे....पूरे दो साल लगे मुझे ठीक होने में....!सुधा जी ने कहा....और उन दो सालों में मुझे परिवार का सुख मिला..वो केयर मिली जो न तुम्हारे पिता कभी दे पायें थे और न तुम...!मैंने हमेशा मेरी हर खुशी का गला घोटा था....कभी तुम्हारे लिए....कभी तुम्हारे पिता के झूठे अहंकार के लिए....! इन दोनों को पा कर मैं स्वार्थी हो गई थी...मैं खुद इन्हें छोड़ कर नहीं जाना चाहती थी.....!


मैं आपको जाने भी नहीं देती माँ....!आपने मुझे वो प्यार दिया हैं जिससे मैं बचपन से महरूम थी...!मेरी माँ तो मेरे जन्म के कुछ समय बाद ही चल बसी थी....पापा ने मुझे बहुत कुछ दिया...पर माँ की कमी आपने पूरी की....!


और इसीलिए नयन जी...मैंने इन्हें मेरी माँ बना ही लिया....इनकी और बाबा की शादी करा के....!इन दोनों का रिश्ता उतना ही पवित्र और निर्मल हैं जितनी पवित्र मंदिर में भगवान की मूरत होती है...!ना कोई छल....ना कपट....!हाँ....एक दुसरे के पूरक जरूर बन गए हैं ये दोनों अब.....!उम्र के इस दौर में सबसे ज्यादा जरूरत एक जीवन साथी की होती हैं.....!जो माँ की तरह ख़याल रखें, पत्नी सी फ़िक्र करे, बेटी सा डांट दे और दोस्त सी बातें करे....!आपने जिस देवी को बेशर्म और बदचलन कहा हैं न, वो दरअसल दुनिया में सबसे पाक है.....!हाँ इनका कसूर इतना ही था, बेटे बहू के होते हुए, ये इस दुनिया में नितांत अकेली थी.....!


बस करो दीदी.....!नयन, सुदिप्ता के पैरो में गिर पड़ा....मुझे मेरी ग़लती का एहसास हो गया है....मैं आप सब से माफ़ी मांगता हूँ....अपने छोटे भाई को माफ़ कर दो....!फिर सुकेश जी की तरफ देखतें हुए, नयन ने कहा....पापा......क्या इस बेटे के सर पर हाथ रखेंगे?एक बार गले लगा लिजिए ना......सालो हो गए.....पिता के गले लगे.....!सुबकते हुए नयन ने कहा 


सुकेश जी ने, नयन को कस के गले से लगा लिया.... सुधा जी और सुदिप्ता दोनों.....आकर सुकेश जी और नयन के गले लग गई....!


चारों की डोर जो कि एक पवित्र रिश्ते से बंधी थी आज और मजबूत हो गई....  क्यूँकि ये डोर समय और नियती ने बाँधी थी न की स्वार्थ की पृष्ठभूमि ने....!! 



    ~~~~~~~~~~समाप्त~~~~~~~~~~~~



मौलिक एवं स्वरचित रचना,

नेहा चौधरी  द्वारा....🙏🙏


  














Friday 11 September 2020

इश्क़ तेरा....!!

 


तेरे इश्क़ की खुमारी में,
ऐसे हम गुम है,
बताओं इश्क़ हैं खुबसूरत,
या खुबसूरत हम है...?

नशे की बात करती,
तेरी ये आँखे,
पलकों की छाँव में,
बनाएं है हजारो आशियाने.....!

होठों की ये मुस्कान,
जैसे हो तीर-कमान,
बेसुध सी,बेखबर सी,
हो गई मेरी रूह और जान....

मेरी हर सोंच पर,
पहरा है तेरा,
ताना बाना बुनती हूँ,
कैसा होगा चेहरा तेरा....?

काश तसव्वुर से निकाल,
तुझे मैं सवार सकूँ,
तेरी बाहों में ही,
जिंदगी मैं बीता सकूँ....!

रोज धड़कने बेतरीब रहतीं हैं,
तुझे मिलने की आस में,
हर साँस मेरी,
उम्मीद के करीब रहती है....!

तुम मिलों न मिलों,
पर तुम मेरे साथ हो.....
हो दुआ कबूल और,
तेरे प्यार की बिन मौसम बरसात हो......!!

✍✍नेहा चौधरी की क़लम से 🙏🙏



Friday 7 August 2020

बुलंद हौसलें

 आज से करीब 23 साल पहलें,


मैं और तुम्हारी माँ लता पक्की सहेलियां थीं...मेरे भाई श्याम को लता बचपन से राखी बांधती थीं..लता की शादी के बाद भानुप्रकाश को, मेरा और श्याम भईया का लता से मेलजोल रखना बिलकुल नहीं सुहाता था...वो अकसर लता से हमारे लिए झगड़ता....चौधरी होना उसके लिए बहुत शान की बात थीं....अपने पैसे का...रूतबे का भानुप्रकाश को बहोत घमंड था....गरीब लोगों को कीड़े मकोड़े की तरह समझता था हमेशा...!पर लता ऐसी नहीं थी...वो तो हम दोनों भाई बहन को अपने सगे भाई बहन की तरह समझती थी....


एक दिन तुम्हारे नाना ठाकुर ब्रजमोहन जी की तबियत अचानक बिगड़ गई...आनन-फानन में उन्हें हस्पताल में भर्ती कराया गया....जांच के बाद पता चला कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा था....लता को खबर की गई तो वो तुम दोनो को लेकर मोहननगर आ गई....भानुप्रकाश उस वक्त कहीं बाहर गया हुआ था.... जब वो हवेली पहुँचा, उसे खबर लगी की लता मोहननगर गई  हैं.....तुम्हारे नाना की हालत देख लता बुरी तरह से घबरा गई...बचपन में ही माँ का साया उसके सर पर से उठ गया था और बाप को जिन्दगी और मौत के बीच में झुलते देख लता पागल सी हो गई थी....!


एक रोज लता हस्पताल में भागम-भाग करतें हुए चक्कर खा कर गिर पड़ी,भईया ने उसको संभाला....जब उसे होश आया तो वो भईया के गले लग कर रो पड़ी और ठीक उसी समय तुम्हारे पिता और चाचा सुमेर लता के कमरे में दाखिल हुए..!लता और भईया को गले लगें हुए देख भानुप्रकाश और सुमेर दोनों गुस्से से कांप उठे..!लता ने उन्हें समझाने की कोशिश की, पर वे दोनो भाई बहन के पवित्र रिश्ते पर लांछन लगाने से बाज़ नहीं आए! तुम्हारे चाचा सुमेर की नज़र तो वैसे भी लता पर खराब ही थीं...!उसने आग में घी डालने का काम किया.! लता के चरित्र पर लांछन लगाकर यें कहा गया कि, तुम दोनों भानुप्रकाश की संतान नहीं हो..! भानुप्रकाश क्रोध में इतना अंधा हो गया था कि, सोचने समझने की शक्ति ही खो चुका था!वो सिर्फ और सिर्फ लता और श्याम भईया के ग़लत रिश्ते को ही सच मान बैठा था...सुमेर ने उनके मन में ये अच्छी तरह से बिठा दिया था कि तुम दोनो नाजायज़ औलाद हो! सुमेर चाहता था कि लता उसके आगें रोयें गिडगिडाऐ और समर्पण कर दे...! पर लता एक पतिव्रता स्त्री थीं, उसने कष्ट सहना मंजूर किया....सुमेर के ग़लत मंसूबों का अड़ीग रह कर सामना किया..! 


सुमेर, लता को सबक सिखाना चाहता था, इसलिए उसने तुम्हारे पिता भानुप्रकाश को तुम दोनों को जान से मारने के लिए उकसाया! भानुप्रकाश, सुमेर की हर उल्टी-सीधी बात को सच मानने लगा..! सुमेर ने उसे इस बात का पूरा भरोसा दिला दिया था कि तुम दोनो लता और श्याम भईया की संतान हो और तुम दोनों भानुप्रकाश की मर्दानगी पर प्रश्नचिन्ह हो! सुमेर चाहता था कि वो तुम दोनों को रास्ते से हटा दे जिससे चौधरी खानदान की पूरी जायदाद का वारिस उसका बेटा मनोहर बनें.!!


सुमेर और भानुप्रकाश,तुम दोनों को मारने का मौका खोज रहे थें...एक रोज सुमेर, तुम दोनों को कपड़े दिलाने के बहाने बाजार में छोड़ आया....वो तो छोटा सा गाँव था,सब जानते थें, इसलिए तुम दोनों सही सलामत वापस मिल गए!एक बार छत पर खेलते खेलते बिट्टू का पैर फिसल गया...निचे गिरा पर किस्मत अच्छी थी जो इतनी ऊंचाई से गिर कर भी वो नीचे खड़े चारे के ट्रक में जा गिरा....


एक रोज़ तुम्हारे दुध में ज़हर मिला दिया गया....वो तो संजोग से वो दुध बिल्ली ने पी लिया.....और बिल्ली मर गई!तब पहली बार लता का माथा ठनका! इतने हादसे ऐसे ही नहीं हो सकते हैं, यें सोंच कर उसने मुझसे सारी बातें सांझी की...मैं भी लता की बात सुन चिंता में भर गई थीं....


उसके बाद से, लता तुम दोनों को एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ती थीं....! परछाई की तरह साथ रहतीं थीं तुम दोनों के....एक दिन नशे की हालत में, लता ने सुमेर के सामने सारी सच्चाई उगल दी....पर लता ने कभी जाहिर नहीं होने दिया कि वो सच्चाई से वाकिफ़ हो चुकी हैं....!


पर शायद किस्मत को कुछ और मंजूर था!उस दिन तुम्हारे नाना की हालत ज्यादा बिगड़ गई...घर पर बस मैं और तुम्हारी माँ थें, तुम्हें मुझें सौंप वो काका सा को हस्पताल लेकर भागी....सुमेर ने इस मौके का फायदा उठाया और तुम दोनों के खाने में बेहोशी की दवा मिला दी....तुम्हारे बेहोश हो जानें के बाद तुम्हें गाड़ी में डाल वो सरयू नदी के तट पर लेकर आया...वो बेफिक्र था कि उसको कोई नहीं देख रहा हैं पर मेरी आँखें तो पल पल उसी पर थी.....मैं मौका देख कर उसकी गाड़ी में छिप गई थीं....और जब वो सुनसान जगह देख कर उतरा और वो बेफिक्र हो शराब पीने लगा..... मैं तुम दोनों को गाड़ी से निकाल कर भागी....पर भागने के पहलें मैने, कपड़ो से बने दो पुतले तुम्हारी जगह सुला दियें थें ताकी सुमेर को शक न हो..... 


मुझे कैसे भी करके बस तुम दोनो को बचाना था....मेरी गोद में एक साल की गौरी और तीन साल का बिट्टू नहीं, मेरी सहेली के प्राण थें, उसका मुझ पर विश्वास था...मुझें  दोस्ती जैसे पवित्र रिश्तें की लाज़ निभानी थीं....मैं वहाँ से बिना रुके भागी....पुरी रात भागते भागते मैं करीब दो गाँव पार कर आई थीं....और इसमें मेरा साथ दिया, श्याम भईया ने.....मेरे कहने पर वो गाड़ी लेकर मोहननगर की सीमा पर पहलें से ही खड़ा था....तुम्हारा सामान लेकर और मेरे जरूरत का सामान लेकर...!हमने लता के लिए एक गुप्त संदेशा छोड़ दिया था.....!


दरअसल लता को पहले से ही अंदेशा था कि तुम्हारे चाचा कुछ न कुछ बड़ा करने वाले थें...तुम दोनो को मारने के लिए....!!!!हमारी योजना थी कि हम तुम्हें वहाँ से निकाल ले....हम तिनों ने मिलकर जरूरत का सारा सामान पहलें से ही इकट्ठा करना शुरु कर दिया था....बस जरूरत थी तुम्हें वहां से निकालने की और उसके लिए हम मौका खोज रहे थें...! और मौका तुम्हारे चाचा ने ख़ुद दे दिया.....नशे की हालत में और अंधेरे वो समझ ही नहीं पाया कि उसने जिंदा बच्चों को नहीं बल्कि दो पुतलों को जल समाधि दी हैं....!!!


मैं और भईया तुम्हें लेकर दर दर भटकते रहे...!हमें बस कैसे भी करके तुम्हें बचाना था....आखिरकार भागते भागते हम इस गांव में आ गए...हमनें हमारी पहचान बदल दी...नाम बदल दिया....हम दोनों भाई बहन ने दुनिया को यही बताया कि तुम भईया के बच्चे हो और उनकी बीवी की मौत हो गई थी दुसरी जचकी के बाद....और इसीलिए भईया को भाभी के दुख से उबारने  हम हमारा गाँव छोड़ यहाँ आकर बस गए...! और बस तब से मैं तुम दोनों की धाय माँ बन गई..!!भईया पट्टे के खेत में काम करते थे और एक दिन खेत में बिज़ली गिरने से वो भी चलें गए.....और तब से मेरा कोई हैं तो तुम दोनों हो.....


अभी कुछ दिन पहलें जब गौरी को लखनऊ से वापस लाने  मैं, बिट्टू के साथ लखनऊ गई थी तो वही पर बाजार में मुझे तुम्हारी माँ मिली थीं...हम दोनों एक दुसरे को पलक झपकते ही पहचान गए थें....उसने मुझ से इशारे इशारे तुम दोनों के बारे में पूछा तो मैंने तुम्हारी ओर इशारा कर दिया था....याद हैं तुम्हें, लखनऊ में एक औरत बाजर में चक्कर खा कर गिर पड़ी थी और बिट्टू तूने उसको सहारा दे कर  बिठाया था? वो तुम्हारी माँ थी...!!!!गौरी तुझे याद हैं तुने जब उसे पानी पिलाया था तो वो कैसे फूट फूट कर रो पड़ी थी!!तुम्हें लगा था गिरने से चोट लगी और दर्द की वज़ह से रो रही थी....वो अभागन तो बरसों बाद, अपने बच्चों को देखकर और उनको छूकर रो रही थी!!हम वहाँ से निकलने ही वाले थें कि सुमेर आ गया था....और उस धूर्त को शायद यह समझ आ गया था कि लता क्यूँ रो रही थी....!पिछले महीने मेले में, मैंने सुमेर को मंदिर पर मेरी पूछताछ करते हुए देखा था...और तभी से मैं आज के दिन की तैयारी कर रहीं थीं.....कि तुम दोनों को मेरी सच्चाई  बताएंगा और वो भी ग़लत तरीके से ....!


बिट्टू तू जाना चाहता हैं तेरे पिता के पास???अब तुम दोनों का जो निर्णय होगा मुझें मंजूर होगा...! मेरी तरफ़ से तुम दोनों आजाद हो! मैं तुम्हें नहीं रोक सकतीं!


इतना बोल धाय माँ उठ कर जाने लगीं तो गौरी ने कहा....माँ....हम जाएंगें लखनऊ....!!!गौरी की ओर देखते हुए धाय माँ ने कहा....ठीक हैं....जब जाना चाहों बता देना!पर माँ पूछा नहीं आपने कि क्यूँ जाना चाहतीं हूँ??प्रश्नवाचक नज़रों से बिट्टू और धाय माँ दोनो ने गौरी की ओर देखा??माँ हम वहाँ उन चौधरियों को बेनकाब करने जाएंगे...!हमारी जन्मदात्री को उन पिशाचों के चंगुल से मुक्त कराने जाएंगें..!हम हमारे होने का प्रमाण और हमारे आस्तित्व की जड़ें खोजने जाएंगें और हम उन गुनहगारों को सज़ा दिलाने जाएंगें...!!


गौरी ने आगे कहना जारी रखा....माँ तुम्हारे आँचल में जितने छेद हुए हैं ना....उतने ज़ख्म उस भानुप्रकाश और सुमेर को मिलेंगे अब..!!!मैं आपका, श्याम काका का, बिट्टू भईया का और मेरी जन्मदात्री का कर्ज चुकता करूँगी अब....!!यें मेरा संघर्ष....अब तब पुरा होगा जब मैं गुनहगारों को जेल के पीछे देखूंगी...!!अब यें दुनिया देखेंगी....एक बेटी किस तरह अपने अस्तित्व के लिए, अपने माँ की गरिमा और चरित्र पर लगे दाग़ को मिटाने के लिए अपने बाप से बदला लेंगी.....!!!अब न्याय मिलेगा....हर एक को...!!हर ग़लती की सज़ा मिलेंगी....!हर बात का जबाव मिलेंगा....!!!गुस्से से मुट्ठी भींच कर गौरी ने कहा.....!!!


धाय माँ और बिट्टू दोनों, गौरी का यें रूप देख चकित रह गए...!!!!और गौरी.....उसका चेहरा अजीब से विश्वास से चमक रहा था..!!!


गौरी कैसे अपनी माँ का बदला लेंगी? कैसे अपने और अपने भाई के साथ हुए अन्नाय का बदला लेंगी? 


जानने के लिए पढिए अगला भाग....


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धन्यवाद 


✍✍मौलिक एवं स्वरचित वर्षा अग्रवाल द्वारा 🙏🙏🙏🙏





Thursday 6 August 2020

बुलंद हौसलें - (भाग -3)








माँ ओ माँ कहाँ हो तुम???गौरी धाय माँ को आवाज देतीं हैं.....

धाय माँ रसोई से निकल कर आती हैं....उनकी आंखें लाल लाल होती हैं.....गौरी उन्हें देख चौंक गई....माँ क्या हुआ आपकों आप रो रहें हो..... ????क्या हुआ? किसी ने कुछ कहा क्या आपसे??क्यूँ रो रहें थें आप? बताओं ना माँ.....

अररररे मिर्ची के हाथ लग गए आँख में....!मैं भला क्यूँ रोने लगीं....मैं तो तेरी विदाई पर रोऊँगी....

क्या माँ आप भी?आपने तो ड़रा ही दिया मुझें.....!!अच्छा यें लो, ठकुराईन ने दियें यें पैसे और यें बैग....जाने क्या हैं इसमें??

कितने पैसे हैं???

नहीं पता माँ..उन्होंने कहा कि माँ को दे देना! सो तुम्हें दे दिए.....तुम ही देखों कितने पैसे हैं और इस बैग में क्या हैं....

धाय माँ बैग खोल कर देखतीं हैं तो उसमें सुंदर सी साड़ी होतीं हैं एक सलवार कमीज के साथ...

गौरी देख बेटा...ठकुराईन ने कितनी सुंदर साड़ी और सलवार कमीज दिया हैं!!और देख पूरे पच्चीस सौ रूपए दिए हैं! बजार की किमत से पूरे हजार रूपए उपर!

कमाल हैं माँ ठकुराईन भी....मुझे भी खाना खिला कर भेजा हैं! ऐसे व्यव्हार कल रहीं थीं जैसे मेरी माँ हो.....

क्या बोल रहीं हैं गौरी...मैं हूँ तेरी माँ और कोई नहीं हैं...तुझे मुझसे कोई अलग नहीं कर सकता....कोई भी नहीं....!तू और बिट्टू मेरे बच्चे हो...सिर्फ मेरे!!!कांप उठी धाय माँ गौरी की बात सुनकर....

अररररे माँ क्या हुआ तुम्हें???मैंने तो मजाक में कहा था....और हाँ....मैं और भईया सिर्फ आपके हैं....खुद भगवान भी आकर कहें ना कि आप मेरी माँ नहीं हो तो मैं नहीं मानूंगी....भले ही तुमने हमें अपनी कोख से जन्म नहीं दिया माँ पर तुम हमारे लिए यशोदा से कम नहीं माँ..!जन्म देने वालों ने तो पग पग ठोकर खाने छोड़ दिया....तुम नहीं संभालती हमें तो जाने हम कब का मर गए होते...!!शांत स्वर में गौरी ने कहा.....माँ मैं नहीं जानती कि मेरे असली माँ बाप कौन हैं? वो जिंदा हैं या मर गए..!मैं बस इतना जानती हूँ कि मेरे पहचान तुम से थी....तुम से हैं और तुम से रहेंगी...!!!

हमममम...कभी कभी अतीत की परछाइयां बहुत गहरी होती हैं....जो इंसान के वर्तमान और भविष्य दोनो को जहरीला बना देती हैं....जाने अंजाने में उठाया कदम.....गले की फांस बन जाता हैं....पर मैंने कुछ गलत नहीं किया था.....हालातों की मार ही ऐसी थी कि........!!!!

छोड़ो ना माँ....तुम गलत हो ही नहीं सकती! तुम तो भगवान भी गलत करे ना तो उसके कानों को खिंच सीधे रास्ते पर ले आओं.....जितना भरोसा तुम पर हैं ना......उतना भरोसा तो मुझे ख़ुद पर भी नहीं..!!मेरी अच्छी माँ जल्दी से मुस्कुरा दो अब.....!!!

गौरी....धाय माँ ने गंभीर हो कर पुकारा.....!

क्या माँ???प्रश्नवाचक नजरों से गौरी ने धाय माँ को देखा

कभी कोई तुम्हें लेने आएगा...तो क्या तुम दोनों चले जाओगे???मुझे अकेला छोड़ कर??आँखो में आँसू भर धाय माँ ने कहा 

कैसी बात कर रहीं हो माँ?????तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगी मैं....!!!हाँ,  तुम ससुराल विदा कर दोगी तो.....तो....तो.....तो भी नहीं जाऊँगी.....!!!!
मेरी माँ हो आप.....और उससे पहलें मेरी सहेली हो....अब जल्दी से हँस दो.....वरना मैं आपको गुदगुदी करूँगी...!!!!हँसो.....हँसो नाआआआआआ.....

गौरी की बात पर धाय माँ मुस्कुरा दी और उसे कस के गले लगा लिया.....जैसे ख़ुद में छुपा लेना चाहती हो...!!!!गौरी अच्छी तरह से समझ रहीं थीं के कुछ बात हैं जो धाय माँ को परेशान कर रहीं हैं....! पर उस वक्त गौरी ने चुप रहना मुनासिब समझा।

                        ______________

वृंदा देवीईईईईईई....... बाहर निकलो.....!!!!!वृंदा पांडे......बाहर निकल.....!!!!!बिट्टू की गुस्से में भरी आवाज़ सुन गौरी चौंक उठीं.....!!!वो भाग कर बाहर आई.....भईयाआआआआ.....धाय माँ तो मंदिर...... 

धाय माँ....हुँह...... कौन सी माँ...???काहे की माँ.....गौरीईईईई......

भईया....वो माँ हैं हमारी...!!!

नहीं हैं माँ...!!!बिलकुल नहीं हैं....वो तो नागिन हैं जो बचपन से तेरी और मेरी खुशियों पर कुंडली मारे बैठी हैं......

छन्ननननननन......धाय माँ के हाथ से पूजा की थाली गिर जाती हैं, बिट्टू की बात सुन के.....

ओहहहह.....तो वृंदा देवी मंदिर गई थीं....!!!क्या मांगा भगवान से????यही मांगा होगा ना की हमें तुम्हारे बारे में और तुम्हारी हकीकत के बारे में कभी पता नहीं चलें....!!!हैं नाआआआआआ.....!!!!!पर वृंदा देवी जी.....आपका सारा राज़ खुल गया हैं....!!!


कौन सा राज़ भईया????गौरी ने पूछा 

गौरी तू जानती हैं हम कौन हैं????हम चौधरी भानुप्रकाश की औलाद हैं....वहीं चौधरी भानुप्रकाश जिनका लखनऊ में कपड़े का कारोबार हैं....जानती हैं हमारे नाना मामा कौन हैं....हम ठाकुर ब्रजमोहन के नाती हैं.....वहीं ठाकुर ब्रजमोहन जो मोहननगर के ठाकुर हैं.... जिनके आगें पीछे लोग हाथ बाँधे घूमते हैं!!!!हम....गौरी हम.... चौधरी और ठाकुरों के खानदान के वारिस हैं....जिन्हें इस औरत ने......अगवा कर लिया था.....!!!या सरल शब्दों में कहूँ कि इस औरत ने हमें चुरा लिया था, हमारे माँ बाप से.....क्यूँकि यें बेऔलाद थीं.....!!!इसने हमसे हमारा बचपन चुरा लिया....इसने हमारी इच्छाओं का गला घोट दिया....हमें पैसे पैसे को मोहताज कर दिया!!!गौरीईईई.....इसने हमसे हमारी असली पहचान तक छुपा ली.......इतना कहतें कहतें बिट्टू गौरी के गले लग फूट-फूट कर रोने लगा...!!!!

बिट्टूअअअअअ......मेरी बात सुन बेटा....तुझे किसी ने ग़लत बताया हैं......किसने बताया तुझे यें सब????बिट्टू के सर पर हाथ फेरते हुए धाय माँ बोलीं....तू मेरा बेटा हैं रे....रोते रोते धाय माँ बोलीं  

हाथ हटा लो वृंदा देवी अपना तुमममम....!!!धाय माँ का हाथ झटकते हुए बिट्टू ने कहा....तुम जानना चाहतीं हो मुझे किसने बताया हैं.....रूको......मैं उन्हें लेकर आता हूँ.....इतना कह कर बिट्टू बाहर निकल गया....

गौरी चुपचाप खड़ी धाय माँ को देख रहीं थीं.....!!

कुछ देर बाद.....

कैसी हो वृंदा????किसी ने धाय माँ से पूछा...

धाय माँ ने उस व्यक्ति को गौर से देखा.....फिर कुछ समय बाद उसको पहचान कर बोलीं.......सुमेररररररर.......!!!!!

आहा..!!!आखिर तुमने मुझे पहचान ही लिया.....!!!हाँ मैं सुमेर....चौधरी भानुप्रकाश का छोटा भाई.....इन दोनों का चाचा...!!!मान गए वृंदा तुम्हें...!!!क्या खूब नमक का कर्ज चुकता किया हैं तुमने....!!!भानु भईया के बच्चों को अगवा कर...!!!तुमसे बड़ी पापन और कोई नहीं हैं!!!तुमने मेरी माँ समान भाभी से उसके बच्चे छीन लिए!!!!कितना भरोसा करती थीं वो तुम पर....और तुम....तुम तो आस्तिन का सांप निकली...!!!!छी....छी...छी......हवेली के राजकुमार- राजकुमारी को तुमने ऐसे दडबे में रखा हैं.....???अब मैं इन्हें मेरे साथ लेकर जाऊँगा...!!!मैं मेरे बच्चों को इस बुचडखाने में नहीं छोड़ सकता...!!

सुमेररररररररर......खबरदार!!!!मैं तुम लोगों की असलियत अच्छें से जानती हूँ.....!!मेरे बच्चों पर बुरी नज़र डाली तो मैं तेरी जान ले लूँगी....!और सुन यें जो तू अपनी गंदी जुबान से मेरे बच्चे...मेरे बच्चे बोल रहा है ना......तुम लोगों की मंशा मैं बहुत अच्छी तरह जानतीं हूँ.....दफ़ा हो जा यहाँ से.....वरना अपने पैरों पर जानें लायक नहीं रहेगा.....मत भूल मैं एक माँ हूँ....अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए तेरी जान ले भी सकती हूँ और अपनी जान दे भी सकती हूँ....!निकल जा मेरे घर से....अभी के अभी....!!!!

बिट्टू बेटा....देख रहे हो ना...!!!यें औरत तुम्हें और गौरी को मेरे साथ आने नहीं देगी....जाने दो मैं चला जाता हूँ....बेचारे तुम्हारे माँ -बाप....औलाद के लिए तड़प तड़प कर ही मर जाएंगें.....क्या करें अब....!!ईश्वर की यही इच्छा हैं...गहरी सांस लेते हुए....सुमेर ने कहा......

नहीं चाचा...!हम आपके साथ आएँगे!बरसों हम अपनें माँ बाप से दूर रहें हैं....बरसों हम रोटी के एक एक टुकड़े के लिए तरसे हैं....बरसों से हम दिल की हर ख्वाहिश और इच्छा का दमन कर रहे हैं.....अब और नहीं....!!!हम हमारे माँ बाप का नाम पाएंगें अब....! चल गौरी...!!!

गौरी का हाथ पकड़ कर बिट्टू खींचकर लेकर जाने लगा....

नहींईईईईईई......तुम ऐसे नहीं जा सकतें.....मुझें छोड़कर नहीं जा सकतें इस तरह....!!!धाय माँ रोते रोते बोलीं......मैं पैर पकड़ती हूँ तेरे बेटा.....बोलतें बोलतें धाय माँ बिट्टू के पैर पकड़ने झुकती हैं....!!!!

माँआआआआआआआ.....!!!रूको......क्या कर रहीं हो????गौरी बिट्टू से हाथ छुड़ा कर धाय माँ की तरफ  भागी...

यें क्या करने जा रहीं थी माँ आप????किसी के पैर पकड़ने की जरूरत नहीं हैं आपको....आप ने जो कुछ किया था....उस का कोई ना कोई कारण जरूर होगा....आपने हमें  चुराया या अगवा किया... जो भी किया..कोई ठोस कारण होंगा....आपने हमें जो प्यार दिया हैं वो शायद हमारे सगे माँ बाप भी नहीं देते.....!खुद के मुँह में एक निवाला नहीं होता था आपके....पर आपनें हमें खिलाया....भरपेट.....! खुद के लिए एक कपड़ा नहीं लिया पर भईया और मेरे लिए हर दिवाली कपड़े आते हैं.... क्यूँ भईया आपने कभी देखने की कोशिश की इनकी साड़ी में कितने पैबंद हैं....कभी देखा हैं इन्हें किसी बात की शिकायत करतें हुए?? 

क्यूँ भईया भूल गए आपकों पढ़ाने इन्होंनेअपनी सोने की चेन बेंच दी थी....मेरे पढ़ाई के लिए इसी चोरररररर नेएएएए.....अपना मंगलसूत्र गिरवी रख दिया था!!!बोलो भाई कौन चोर करता हैं ऐसा????

शर्म आनी चाहिए आपको....इनका नाम लेने में!!आप और मैं इनकी जितनी पूजा करे कम हैं.... !!यें हमारी माँ थी....माँ हैं और माँ रहेंगी..!!!

और आपपपपप....हमारे चाचाश्री....सुमेर की ओर देखते हुए गौरी ने कहा......कहाँ थें अब तक???इतने बरसों से हम जिंदा हैं या मर गए ... आपने हमारी सुध ली????आज अचानक हम पर हक ज़माने आ गए आप???हम नहीं मानते आपको अपना..!आप की क्या गारंटी की आप सही में हमारे चाचा हो???

भईया...सबूत देखा क्या आपने?ये आदमी साबित करें कि यें सच कह रहा हैं ???आप इनके साथ जा रहें हो ना,  अगर रास्ते में इन्होंने आपको कहीं धक्का दे दिया तो.....!!!आपकी जान ले ली तो??या आपसे कोई ग़लत काम करवाया तो...????किसी अंजान पर मैं भरोसा नहीं कर सकतीं....!मैं मेरी माँ पर भरोसा करती हूँ...!मेरी यशोदा माँ.....मेरी धाय माँ पर.... !

श्रीमान सुमेर जी ....कृपया करके आप अपना रास्ता नापिए....!हमें कहीं नहीं जाना आपके साथ....और आप हमें जबरदस्ती लेकर जा भी नहीं सकते!!!हम दोनों बालिग़ हैं....तो कहाँ रहना हैं कहाँ नहीं हम...हमारा निर्णय लेने में समर्थ हैं....!!!तो आपसे हाथ जोड़ विनंती हैं.....अभी के अभी निकल जाएं......Gettttttttt outtttttttttt......!!!!पूरी ताकत से चिल्लाई गौरी.....


बेटी मेरी बात सुनों....सुमेर ने कुछ कहने की कोशिश की......

I said Gettttttttt losssssssttttttttt........निकल रहें हो तुम या मैं सारा लिहाज़ भूल तुम्हें धक्के मार के निकालूँ???गौरी गरजते हुए बोलीं 

जा रहा हूँ बिटियाँ....जा रहा हूँ....पर तुम ग़लत कर रहीं हो..... बहोत ग़लत.... जिस दिन तुम्हें इस वृंदा की असलियत मालुम पड़ेगी....तुम पछताओंगी....!!!!ये औरत......,,,

एएएएए.....सुमेरसिहंहहहह.....अदब से बात कर.....वो माँ हैं हमारी.......गरजा बिट्टू......तेरी बातों मे आकर वैसे ही मैंने इस देवी को बहोत जलिल करा हैं....अब तेरी भलाई यहाँ से नौ दो ग्यारह होने में ही हैं.....वरनाआआआ.......गौरी जा पीछे से लठ्ठ लाआआआ........लाख बुरी हैं यें पर लाखों में एक माँ हैं....समझे तुम.......चलो निकलोओओओओओ....... 

जा रहा हूँ......बहुत जल्दी वापस आऊंगा.....देख लूँगा.....तुझे मैं वृंदा.......सुमेर फुफकारते हुए बोला 

पहले हमें देख लेना.....हम हमारी माँ के दाएँ बाएँ हाथ हैं......हमारी माँ के प्रहरी.....!!!!!दोनों भाई बहन एक साथ बोलें..!!!!


आगे क्या होगा???क्या था धाय माँ का सच???क्यूँ धाय माँ बिट्टू और गौरी को अगवा करके लाई थीं????

इन सब प्रश्नों के उत्तर अगले अंक में.....

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धन्यवाद 

✍✍मौलिक एवं स्वरचित...वर्षा अग्रवाल द्वारा 🙏🙏🙏  









Wednesday 5 August 2020

बुलंद हौसलें-भाग 2






बड़ी हवेली के मालिक, ठाकुर अखिलेश प्रतापसिंह, कहते हैं ठाकुर सहाब जो ठान लेते हैं वो करके ही दम लेते हैं! जुनून और जिद्द का दुसरा नाम हैं, ठाकुर अखिलेश प्रतापसिंह!जैसा नाम वैसी किर्ती..!!!आस पास के दस गाँव में, ठाकुर अखिलेश प्रतापसिंह जैसा व्यक्तिव किसी का नहीं हैं.....

उस दिन, ठाकुर अखिलेश प्रतापसिंह के अभिन्न मित्र, नंदकिशोर वर्मा....लखनऊ से गुमानपुरा आए थें.....गुमानपुरा की आबोहवा में, किशोर बाबू खो गए....!!एक अनोखी ताजगी, महक और स्फूर्ति महसूस की उन्होंने...!!

शहर के लोग जब भागदौड भरी जिंदगी से थक जातें हैं और ऊब जातें हैं, तब उन्हें सुकून भरे लम्हों की तलाश होती है और गुमानपुरा...सुकून का दूसरा नाम हैं, यें वो अच्छी तरह समझ चुके थें.....!गाँव में मिट्टी में शहर जैसी मिलावट नहीं होती ना इसीलिए, किशोर बाबू के दिमाग में यहाँ पर एक पाँच सितारा होटल बनाने का विचार कौंधा..!

दो चार दिन अच्छी तरह से सारे गाँव की भौगोलिक स्थिति की जांच परख करने के बाद, किशोर बाबू ने, ठाकुर सहाब के सामने प्रस्ताव रखा....और ठाकुर सहाब उनके प्रस्ताव से सहमत भी हो गए थें....गाँव के उत्तर पश्चिमी सीमांत पर होटल बनाना निश्चित हुआ...पर समस्या यें थी कि वो क्षेत्र उपजाऊ भूमि के अंतर्गत आता और होटल बनाने के लिए कम से कम पाँच सौ एकड़ भूमि की आवश्यकता थीं...और पूरी भूमि पर गाँव के किसानों की खेती थीं....जिस पर उनकी गुज़रबसर होती थीं !!!

अब गाँव वालों को कैसे मनाया जाएं इस बात पर ठाकुर सहाब और किशोर बाबू दोनों गहन मंत्रणा कर रहे थे.....

किशोर बाबू, इन गाँव वालों को मनाना इतना आसान नहीं है!!!यें इस भूमि पर सदियों से अन्न उगा रहे हैं....इतनी आसानी से यें लोग अपनी आजीविका का सौदा नहीं करेंगें....!!!!

हममम.....बात तो सौ आने सही हैं आपकी ठाकुर सहाब!!पर कोई ना कोई उपाय तो जरूर होगा!!कैसे भी करके हमें दो चार लोगों को तोड़कर हमारी तरफ करना होगा...!एक बार उन्होंने हमारी बात का समर्थन कर दिया ना....तो फिर बाकी लोग भी टूट ही जाएंगें...!!!

पर क्या करें????ठाकुर सहाब ने अपनी पेशानी पर ऊँगली फिराते हुए कहा.....

शायद मैं आपकी मदद कर सकता हूँ पापा......!!!!

ठाकुर साहब और नंदकिशोर जी दोनों ने दरवाज़े की तरफ़ देखा.....एक पच्चीस छब्बीस साल का युवक...ब्ल्यू जींस और वाईट टी शर्ट में  आँखो  पर सनग्लासेस लगाए खड़ा था....!!!

ओहो.....छोटे ठाकुर....!!!!

ठाकुर आशुतोष प्रतापसिंह.....दिल्ली से M.B.A की पढ़ाई कर तीन साल बाद लौटा था.....लंबे कद का सुदर्शन युवक...हसमुख चेहरा...बड़ी हवेली का इकलौता वारिस..!!!

छोटे ठाकुर आ गएएएएएएए......छोटे ठाकुर आ गएएएएएए....पुरी हवेली में गूंज उठा!!!!!

आशुतोष भागकर ठाकुर साहब के पैर छूता हैं....ठाकुर सहाब उसे कस के गले से लगा लेते हैं.....

इतनें में ठाकुर सहाब की धर्मपत्नी प्रभादेवी आरती का थाल लिए बैठक में दाखिल होती हैं....!!!!

मेरा बेटा आ गया....!!!!मेरा आशुअअअअ.....!!!मेरे लाल....!!!!प्रभा देवी आशुतोष की आरती उतराती हैं और नज़र उतार पैसे नौकर को दे देती हैं....

आशुतोष, माँ के पैर में झुकते ही कहता है, माँ जल्दी से आशीर्वाद दे दो...वरना तुम अभी आशीर्वादों की झड़ी लगा दोगी....मेरी कमर ज्यादा देर झुकी रही तो अकड़ ही जाएंगी बेचारी.....!जल्दी से पापा की तरह आशीर्वाद का कार्यक्रम शार्टकट में निपटा दो....!!

अच्छा ड्रामेबाज!!!!....चलो चलो सीधे खडे हो जाओं ...हमारा आशीर्वाद आपके साथ ही हैं हमेशा...प्रभा देवी ने छोटे ठाकुर के सर पर हाथ फेरते हुए कहा

और मुझे यें अच्छें से पता हैं कि आप दोनों का आशीर्वाद हमारे साथ हैं हर कदम.....तभी तो हमनें पुरे कालेज में टॉप किया हैं.....अब हम एक ऐसा बिजनेस सेटअप करेंगे कि गुमानपुरा का नाम पूरे भारत में मशहूर हो जाएगा!!
और आप दोनों कहीं भी जाऐंगे न, तो लोग कहेंगे वो देखों गुमानपुरा के आशुतोष प्रतापसिंह के माता-पिता जा रहें हैं....हमारे नाम से आपकी पहचान बनेंगी....बहुत जल्द ...!!!!

बिलकुल बनेंगी बरखुरदार...!!!!तुम हो ही इतने क़ाबिल और होनहार..!!!  नंदकिशोर जी ने कहा.....

शुक्रिया काका सा.....!!!

माँ, मुझे बहोत जोर की भूक लगीं हैं ....जल्दी से मेरे लिए तुम्हारे हाथ की पुरी सब्जी बना दो...!!!!कम से कम पचास पुरी बनाना.....तीन साल की कसर पूरी करनी हैं....!मैं बस दस मिनट में आता हूँ...!!!

हाँ.... हाँ .....आप पचास क्या सौ पुरी खाना....पर फिर मुझसे हाजमे वाली गोली मत माँगना......

हा हा हा हा हा हा हा.....सब लोगों की हँसी से बड़ी हवेली गूंज उठी....!!!

                     _____________

 गौरी......ओ गौरी.....बेटा कहाँ हैं  तू....????धाय माँ ने गौरी को आवाज़ दी.....

आईईईईईईई  माँ......

बोलो माँ....क्यूँ बुलाया??

गौरी....बिटिया यें आचार की बरनी बड़ी हवेली दे आ ना...ठकुराईन जितना पैसा दे ले लेना.....कोई मोलभाव मत करना....और वो देख वहाँ उस थाल में मठरी बना कर रखी हैं....सुना हैं, छोटे ठाकुर साहब शहर से वापस लौट आए हैं, उन्हें मठरी बहोत पसंद हैं....उस थाल की आधी मठरी छोटे ठाकुर साहब के लिए ले जा...!

और सुन सलीके से जाना....वो नया वाला सलवार कमीज निकाल ले....और सबके पैर छूना वहाँ....ठकुराइन को मेरा प्रणाम बोलना....और वहाँ धीरे-धीरे बात करना.....औरररररर......धाय माँ की बात काटते हुए गौरी ने कहा..... 

ओ हो माँ.....बड़ी हवेली भेज रहीं हो या ससुराल जो ये करना...वो करना...की फेरहिस्त सुनाए जा रही हो??मैं ना जैसे अभी यहाँ हूँ वैसी ही वहाँ रहूँगी....मुझ से नहीं होता यें ज्यादा सभ्य और संस्कारी बनने का ढोंग....!!!

हे भगवाननननन....गौरी गुस्सा तो तेरी नाक पर रहता हैं....!!!!जा तुझे जो करना हैं कर...!किसी की सुननी तो हैं नहीं तूने....!!

सुनती हूँ...हमेशा सुनती हूँ पर बस ग़लत नहीं सुन सकती हूँ ना सह सकती हूँ!!!!!अब तुम्हारा डांटना हो गया हो....तो तैयार हो जाऊँ....मेरे ससुराल यानी की बड़ीईईईईईई हवेलीईईईईईई.....जाने....!!!!

रूक जा मैं बताती हूँ तुझे.....मेरा मजाक उड़ायेगी....????

आए हाए माँ.....तुमको कैसे उड़ा सकती हूँ....????तुम  तो कम से कम सौ किलो की हो...!!!!धाय माँ की नकल करते गौरी ने कहा  

ठैर....तू ठैर बसस.....!!!!!मेरे से मस्खरी...???

हाँआआआआआ....तुम्हारे से मस्खरी....क्यूँकि तुम मेरी माँ हो....और कोई बोल के तो दिखाएं तुम्हें कुछ...जुबान खिंच लूँगी....!!!धाय माँ के गले में झुलते हुए गौरी ने कहा 

जा ना गौरैया....जल्दी से देकर आजा....और देख ज्यादा देर रूकना नहीं....  
                            _____________

गौरी, जैसे ही बड़ी हवेली के नजदीक पहुँचती हैं, उसे गोली चलने की आवाज़ सुनाई देती है.....और एक कबूतर ...उसके सामने आकर गिरता हैं...!!!गौरी भाग कर उस कबूतर को उठाती हैं.....इतने में वहाँ, हवेली का एक नौकर आता हैं...

ए लड़की..!!इस कबूतर का शिकार हमारे छोटे ठाकुर साहब ने किया हैं, ये हमारा हैं.....चल दे दे हमें!!!

गौरी उसकी बात को अनसुना कर, उस कबूतर के जख्मो को साफ कर थोड़ी सी मिट्टी लगा देती हैं और उस कबूतर को वापस उड़ा देती हैं.....!!!

पागल लड़की यें क्या किया तूने????छोटे ठाकुर साहब का गुस्सा तुम नहीं जानतीं....मेरी तो नौकरी खतरे में पड़ गई है तेरी वजह से......

नौकरी की इतनी ही चिंता हैं, तो रोका क्यूँ नहीं छोटे ठाकुर साहब को???इतने तो ना समझ नहीं होंगे वो कि अच्छें बुरे की समझ ना हो!क्या सोंच कर इस बेजुबान पर गोली चलाई??भगवान ने बुद्धि के नाम पर क्या उपर वाला माला....खाली छोड़ दिया हैं???


ए लड़की चुप हो जा!!!किसी ने सुन लिया तो तेरी खैर नहीं????चुपचाप निकल जा यहाँ से....

और सुनो....जैसे की मैं तुम्हारी बात से डर ही जाऊँगी....अपने मन से आई हूँ....अपने मन से जाऊंगी....तुम्हें इतना डर हैं उस छोटे ठाकुर से तो जाओ और बोल देना पक्षी दिखा ही नहीं...!!!जाओ अबबबब......गौरी ने कहा

क्या पागल लड़की हैं...बिना मतलब की मुश्किल में फंसा दिया... क्या जबाव दूँगा छोटे ठाकुर साहब को.....बडबडाते हुए वो नौकर हवेली के अंदर चला गया....

गौरी ने अपना सामान उठाया और हवेली के दरवाज़े पर आ गई....वहाँ खड़े दरबान से उसने कहा....

काका सा....धाय माँ ने भेजा हैं...बड़ी काकी सा को यें सामान देना हैं..!!!

धाय माँ ने भेजा हैं तुमको.....!जाओ बिटियाँ....ठकुराईन के कमरे में चलीं जाओ....रूको हम किसी को साथ भेज देते हैं तुम्हारे...!!!

रज्जों.....ओ रज्जों....तनिक ईहा आओ बिटिया...!

का हुआ दरबान दादा...? काहे बुलाया हैं? मालकिन के पास जा रहें थे ना....अब हमका टोक दिया तुमने...हमारा किमती बख्त खराब कर दिये.....दरबान काका और गौरी दोनों उसकी तरफ आँखें  फाड़ फाड़ कर देखे जा रहें थे.....

अब बोलो भी दद्ददददाआआआ.....का टुकुर टुकुर देख रहें हो????

देख रहा हूँ, तो बोलती हुई कितनी अच्छी लगती हैं.....थोड़ी देर चुप रहेंगी तो और अच्छी लगेगी...!!!

हाए सच्ची का??? अब हम चुप रहेंगी....!!!!पर ई तो बता दो....हमसे का काम था तुमको दद्दा...????

ई धाय माँ की बिटिया हैं....मालकिन से मिलने ख़ातिर आई हैं.....तनिक ईका मालकिन के पास ले जाओ!!!

बसससससस....इत्ती सी  बात????इत्ती सी बात कहने में दादा तुम पुरा आधा घंटा लगा दियें....हमारा इत्ता किमती टेम बरबाद कर दियें .....चलो गुडिया रानी... तुमको मालकिन के पास लिए चलतें हैं....!!

गौरी, रज्जो को आँखे फाड़ फाड़ कर देखे जा रही थी.....रज्जो अचकचा कर बोली....चलो भी अब....हमको देखने थोड़े ही आई हो????

रज्जो की बात पर गौरी और दरबान दादा दोनो हँस पड़े और गौरी अपना सामान उठाएं रज्जो के साथ हो ली....!
                       _____________        

रज्जो गौरी को ठकुराईन के कमरे में लेकर आतीं हैं.....और कहती है, बैठो तुम बिटिया....हम बताते हैं जाकर मालकिन को...वो रसोई में हैं...!!!ऊ का हैं ना, छोटे ठाकुर आए हैं ना....उनके लिए खाना बना रहीं हैं वो....लाड़ले बेटे जो हैं......

रज्जो और कुछ कहतीं उसके पहले गौरी ने कहा, एक ग्लास पानी मिलेंगा???

हाँ.....अभी लातें हैं....!!

शुक्र हैं ये गई तो सही...!!!!

थोड़ी देर में, बड़ी हवेली की मालकिन.....प्रभा देवी कमरे में दाखिल होती हैं.....

गौरी उन्हें देख आगे बढ़कर उनके पाँव छूती हैं.....काकी माँ हम धाय माँ की बेटी हैं....गौरी.....

ओ हो....तो गौरी हो.....?पुरे गुमानपुरा में आपकी नेकदिली के चर्चे है...!!! कहीं बाहर रहतीं थी ना आप??

जी काकी माँ....लखनऊ रहते थें....वकालत की पढाई पूरी हो गई हैं हमारी....बस थोड़े वक्त में हम वकील बन जाएंगे....!

यें तो बहुत अच्छी बात हैं बेटा.....तुम पहली लड़की हो गुमानपुरा में जो वकील बनेंगी...!!आगें क्या करने का सोचा हैं...

काकी माँ...हम न्यायाधीश बनेंगे....हम न्यायिक परीक्षा की तैयारी कर रहें हैं....!!!अच्छा काकी माँ, माँ ने आपके लिए यें आचार और छोटे ठाकुर साहब के लिए यें मठरी भेजी हैं.....

अच्छा किया जो धाय माँ ने आचार और मठरी भेज दी...रज्जो इनसे ये ले लो.....थोड़ा सा एक कटोरी में निकाल कर पहले ठाकुरजी के भोग लगा दो...और फिर छोटे ठाकुर साहब को परोस दो....आचार और मठरी दोनो.....और सुनो एक थाल और लगा कर लाओं.....गौरी के लिए....

नहींईईईई...काकी माँ....हम खाना नहीं खा सकते हैं...!!!परेशान होते हुए गौरी ने कहा

क्यूँ?? कोई दिक्कत हैं??ठकुराईन ने पूछा 

काकी माँ....माँ ने हमारे लिए खाना बनाया हैं घर पर अगर हमनें नहीं खाया तो माँ की इतनी मेहनत बेकार जाएंगी और खाना भी!!!सिर झुकाए गौरी ने कहा 

गौरी की बात सुन, रज्जो हो हो कर हँस पड़ी...

ठकुराईन ने रज्जो को आँखे दिखाई और मुस्कुराकर गौरी से कहा....तुम सच में शहर से पढ़कर आई हो क्या????ठकुराईन ने गौरी से पूछा....क्यूँ कि आजकल के बच्चे इतना कहाँ सोचते हैं??? और तुम अब नहीं खाओगी तो हमें बुरा लगेंगा कि इतनी प्यारी बच्ची को हमनें ऐसे ही भेज दिया....!तो खाना तो तुम्हें खाना ही पड़ेगा....तुम्हारी माँ के हाथ का खाना तुम रोज खाती हो आज इस माँ के हाथ का खाना खा लो....!!

जा रज्जो जल्दी से हमारी प्यारी सी बेटी के लिए थाल लगा कर लाओं.....

जी मालकिन.....कह कर रज्जो बाहर निकल गई....

अच्छा गौरी और बताओं तुम क्या क्या कर लेती हो....

बस काकी माँ, ज्यादा कुछ नहीं...सिलाई, कढाई, बुनाई और हमें भजन गाने का बहुत शौख हैं....!!

अरे वाह!!!!तुम तो बहुत गुणी हो...!!!

अच्छा तुम दो मिनट दो हमें हम आते हैं.....कुछ देर में ठकुराईन एक कपड़ा लेकर  आती हैं....गौरी....यें कपड़ा  देखो और बताओं इसे हम कैसे इस्तेमाल करें??? इतना ही कपड़ा हैं पर काफी महंगा हैं....प्योर सिल्क हैं....

गौरी ने कपड़े को हाथ में लेकर देखा.....

काकी माँ आपके पास लेस हैं क्या??? 

हाँ हाँ हैं ना....

तो हमें दे दीजिये...

थोड़ी देर में गौरी उस कपड़े की भगवान की पोशाक बना देतीं हैं.....और लेस लगाने लगती हैं.....सुई धागा लेकर 

अरे वाह!!!!!कमाल कर दिया तुमने तो.... !!!!!काकी माँ गौरी को और कुछ कहने ही वाली थी कि इतने आशुतोष गुस्से से भुनभुनाते हुये कमरे में दाखिल हुआ

Useless.....bloody cheaper!!!!!सब के सब निकम्मे हैं....कैसे कैसे लोगों को नौकरी पर रखा हुआ हैं आप लोगों ने माँ..... किसी काम के नहीं हैं....!!

अररररररे क्या हुआ....क्यूँ गुस्सा कर रहे हैं आप इतना???

तो क्या करूँ गुस्सा नहीं करूँ तो....!!!हमनें एक कबूतर पर निशाना लगाया था....वो कबूतर गिरा भी पर एक Stupid....non sense लड़की ने उसको उड़ा दिया.....हरीया चुपचाप देखते रहा....मन तो कर रहा हैं उस लड़की और हरीया....दोनों को गोली मार दूँ!!!I am damn pissed off maaa.......!!!!

गौरी, छोटे ठाकुर का सारा तमाशा देख रही थी.....अचानक से वो उठी और उसके हाथ में जो सुई थी....छोटे ठाकुर को चुभ दी उसने.....!!!!

आईईईईईई......have u gone mad...???? Are you out of your senses......मतलबबबब......तुम हो कौन????माँआआआआ....कौन हैं यें पागल लड़की????

No I am not mad.....I am in my full sense....I just want you to feel pain.....See how much you are screaming.....!!!!!..कितना चिल्ला रहे हैं ना आप एक सुई के चुभने से.....सोंच कर देखिए आपने उस बेजुबान पक्षी पर गोली चला दी!!!!सिर्फ आपके शौक को पूरा करने के लिए!!!!उसको तो इससे कहीं ज्यादा दर्द हुआ होंगा......पर वो तो किसी से कुछ कह नहीं सकता ना....तो आपको उस का दर्द कैसे समझेंगा????

ए लड़की....!!!!माफ़ी मांग अभी के अभी....पीछे खड़ा हरीया चिल्लाया.....

किस लिए माफ़ी????मैं ग़लत नहीं हूँ....!!!! गौरी ने संयत और शालीन तरीके से जवाब दिया....

सही ही तो कहा गौरी ने, आशुतोष आपने गलत किया....दुबारा किसी बेजुबान को अपने शौक की बली मत चढ़ाना!!!!!ठकुराईन ने छोटे ठाकुर को कहा

काकी माँ, यें लीजिए....हो गई यें पोशाक.....अब चलती हूँ मैं.....

रज्जो वो थैली, गौरी को दे दे.....!!!और गौरी यें आपकी माँ को दे देना....गौरी के हाथ में पैसे पकड़ाते हुए, ठकुराईन ने कहा....

आशुतोष, गौरी को घूर घूर कर देखे जा रहा था और गौरी बिना उसकी तरफ़ ध्यान दियें, ठकुराईन के पैर छू कमरे से बाहर निकल गई.....!!!

आगे गौरी की जिन्दगी में क्या होने वाला है???क्या ठाकुर अखिलेश प्रतापसिंह किसानो की जमीन पर होटल बना पाएंगे????क्या आशुतोष, गौरी से बदला लेगा...????इन सब बातों का जवाब आने वाले अंक में......

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✍✍मौलिक एवं स्वरचित वर्षा अग्रवाल द्वारा  






  



   








Tuesday 4 August 2020

बुलंद हौसलें




गौरी.....ओ गौरी......


कहाँ मर गई,???कब से बुला रहीं हूँ.....कान में तेल डाले बैठी है क्या????जल्दी से बिट्टू के लिए खाना लगा दे.....देर हो रही हैं इसे....


धाय माँ......वो घर में होगी तो सुनेगी ना???गई होगी कहीं समाजसेवा करने!!! आपने ही तो सर चढ़ा रखा हैं इसे....!!!मैडम के तेवर देखों...!सीधे मुँह बात तक नहीं करतीं जैसे कहीं की राजकुमारी हो!!! बिट्टू ने कहा


आए हाए तेरा पेट क्यूँ दुख रहा हैं.....???वो हैं ही ऐसी...गल्तियां करते देखा है उसे कभी???कभी किसी का दिल नहीं दुखाती....कभी किसी को किसी भी काम से मना नहीं करतीं...सुरत और सीरत दोनों बेमिसाल हैं मेरी गौरैया की!!!धाय माँ....नाम इनका वृंदा हैं.....पर पुरा गाँव धाय माँ के नाम से जानता हैं......


बस....बस....बस....धाय माँ आपको तो मौका मिला नहीं कि आप शुरू...!!!!हाथ जोड़कर बिट्टू उर्फ ब्रजेश गुप्ता ने कहा.... गौरी के तारीफ़ो का पुलिंदा बंद करो और मुझे खाना दो....जल्दी से....!


इतने में पायल की रूनझुन से पुरा गलियारा गूंज उठा.....एक तेईस- चौबीस साल की लड़की एक टोकरी में ढेर सारी कैरी लिए रसोईघर में हाँफते हुए घुसती हैं...!साँवले से मुखड़े पर दुनिया जहान की मासूमियत ....सादा से सलवार सूट में भी उसकी खुबसूरती निखर रही थी..केशों को चोटी में समेटे हुए थी......!!!


रसोईघर में घुसते ही टोकरी रख....मटका छूने लगतीं हैं......पानी पीने के लिए!


अररररररे रूक गौरी...!!!कितनी बार कहा हैं कि बाहर से आकर रसोईघर में बिना हाथ धोये कुछ ना छुआ कर!तू तो मेरा पुरा धर्म भ्रष्ट करने पर तुली हुई हैं.....!!


ओ हो धाय माँ.....कितनी बार कहा हैं कि, मेरे हाथ साफ रहते हैं हमेशा....पर तुम तो  नाआआआ....बससस....छुआ-छूत में ही अटक जाती हो.....!


अच्छा यें लो....बजरंगी चाचा के बगीचे की कैरीयां.... सच पुरे गाँव में बजरंगी चाचा के बगीचे के समान कैरी कहीं नहीं लगतीं!!!


पर उस कंजूस बजरंगी ने तुझे इतनी टोकरी भर कैरी कैसे दे दी.....???धाय माँ ने पूछा  


याद है तुम्हें....मैंने बजंरगी चाचा के बेटे को पढ़ाया था???.....उसकी परीक्षा थी जब.....आज परीक्षा का रिजल्ट आया हैं ....उनके लड़के को परीक्षा में  सत्तर प्रतिशत अकं मिले है....वो बहुत खुश थे...कि इस बार उनका लड़का फ़ेल नहीं हुआ और पास भी इतने अच्छे नंबर से हुआ है.... .वो पैसे देने लगें तो मैंने कैरी मांग ली...!तुम उस दिन बोल रही थी ना इस बरस आचार डालेंगे..!!काफ़ी लोगों ने मांगा हैं...!


पर बिटियाँ...पैसे ले लेती ना...तुझे चाहिए ना पैसे तेरे लिए मोबाइल फोन लेने....!!तेरी पढ़ाई के लिए मोबाइल जरूरी है ना....?


हाँ हैं ना....पर माँ....घर की जरूरत भी तो हैं ना....तुम्हारे हाथों का आचार अच्छें दाम में बिकता हैं....और फिर अबकी बार तो बड़ी हवेली से मांग आई है तुम्हारे आचार की....तुम आचार डाल दो तो मैं जाकर दे आऊंगी....!!दाम बता देना कितना लेना हैं..???हाथ मुँह धोते हुए गौरी ने कहा


अरे बिट्टू भईया आप काम पर नहीं गए अभी तक??लेट नहीं कर दिया आज आपने???


नहीं नहीं....लेट नहीं हुआ....आज शाम को सुख्खी जल्दी जाने वाला हैं तो मैं नौ बजे तक काम करूँगा!!!अभी मेरी पारी में वो जल्दी आकर काम कर रहा हैं...हमने कल ही घनश्याम चाचा को बता दिया था...!!!


अच्छा....!!!!भईया आपको थोड़ा समय और हैं क्या???गौरी ने पूछा


हाँ हैं ना..बोल?खाना खाते खाते बिट्टू ने कहा


वो गीता चाची हैं ना...बरगद के पेड़ के पास उनका घर हैं आप जानतें हो ना....


हमममम....जानता हूँ!!!


उनकी बहू की डिलीवरी होने वाली हैं कल परसो में ही ....मैंने कुछ झबले और पोतडे बनाए हैं....आप जाते  जाते उन्हें देते हुए चले जाओ ना...!!चाची का मोतियाबिंद का आपरेशन हुआ हैं ना तो उन से नहीं बने होंगे...!!


क्यूँ री तुझे गीता ने कहा था क्या बनाने???धाय माँ ने पूछा


नहीं माँ पर मुझे मालूम था ना कि काकी का आपरेशन हुआ हैं....तो मैंने खुद ही बना दिए....!!!पिछले महीने तुमने सौ रूपए दिए थे ना उससे दो मीटर कपडा लेकर आई थी मैं....


पर वो पैसे तो तुझे चप्पल लाने दिए थें...!!!!मतलब तू चप्पल लाई ही नहीं???


देखों माँ मैंने उसी चप्पल को सुंदर सी लेस लगा कर नया सा कर लिया हैं!!!!


हे राममम....!!!क्या करूँ मैं तेरा गौरी???तुझे कभी खुद की सुधि भी होती हैं????गौरी को चपत लगाते हुए धाय माँ ने कहा


मेरी सुध लेने...तुम और भईया हो ना...!!!अब जल्दी से मुझे भी खाना दे दो....बहुत भूक लग गई हैं....मैं बस दो मिनट में भईया को गीता चाची का सामान लाकर देतीं  हूँ....!!!!कहते हुए गौरी बाहर भाग गई


देख रहा है न तु बिट्टू???इस लड़की को अपने हो या पराए सबकी फिक्र और चिंता हैं!कौन कहेगा यें लड़की इतनी पढ़ी लिखी हैं....और वकालत पास करने वाली हैं कुछ ही दिनों में.....


हाँ माँ.....ये बिलकुल बाबा की परछाई हैं....बस इतनी सी फिक्र है कि इसकी किस्मत भी बाबा जैसी ना हो! उन्होंने भी अपनी पूरी जिंदगी औरों की भलाई में लगा दी और बदले में उन्हें क्या मिला..जिल्लत और.....खुदक......


चुप हो जा...गौरी आ रही हैं...गौरी की पायल की आवाज़ सुन धाय माँ ने कहा


लो भाई ये दे देना गीता चाची को और उन्हें पूछ लेना और कुछ चाहिए तो? मैं सब बना दूँगी....


हमम...अच्छा ठीक हैं..!चल मैं निकलता हूँ अब....माँ मैं आता हूँ रात को 9.30 बजे तक.....इतना कह बिट्टू निकल जाता हैं


चलो माँ हम भी खाना खा ले फिर हम आचार के लिए कैरी काट लेंगे....!!


बिलकुल नहीं....तू चुपचाप बैठ कर पढ़ाई करेंगी....इस तरह घर के काम में उलझी रहीं तो तू बड़ी अफ़सर कैसे बनेंगी???


उसकी तो तुम फिक्र मत ही करों!!मुझे अफ़सर बन ने से कोई नहीं रोक सकता....!!मैं बहुत जल्द पूरी दुनिया में चमकने वाली हूँ...बहोत जल्दी हर तरफ यहीं खबर होगी कि......उत्तर प्रदेश के गुमानपुरा नाम के छोटे से गाँव की रहने वाली गौरी शिवशंकर गुप्ता ने.....भारतीय न्यायिक परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया....!!!!


और मैं सब का आभार...करतें हुए ऐसे अदब से झुक जाऊँगी.....!!!झुकने की ऐक्टिंग करते हुए गौरी ने कहा


ईश्वर तेरा हर सपना पुरा करें मेरी लाड़ो...!!!!


बिलकुल करेगा.....अब जल्दी से खाना दे दो.....पेट में ना चूहे और बिल्ली की लड़ाई शुरू हो चुकी हैं ...!!!!


चल तू बैठ....!मैं परोसती हूँ


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रात  के करीब दस बजे, बिट्टू काम से वापस आया....और उसने सबसे पहले गौरी को और धाय माँ को आवाज़ लगाई.....


गौरीइइइइइइ........


माँआआआआआआ.......


कहाँ हो आप दोनो जल्दी से बाहर आओं!!!!


बिट्टू की आवाज़ सुन दोनों बाहर आते हैं....


क्या हुआ भईया.....इतने खुश क्यूँ हो....?


आँखे बंद कर तो बताऊँ!


बताओं ना???ठुनकते हुए गौरी ने कहा


पहले आँखे बंद!!!!


हमममम.....लो....कर ली आँखें  बंद!अब तो बता दो....


हाथ आगे कर अपना.....बिट्टू ने कहा


गौरी ने हाथ आगें बढ़ाया तो बिट्टू ने पाँच पाँच सौ की चार नोट निकाल कर उसके हाथ पर रख दी!!!!


अब आँखें खोल!!!!


अपने हाथ पर दो हजार रुपये देख गौरी अचरज में घिर आई..!!!उसने सवालिया नज़र से बिट्टू की ओर देखा....


गीता चाची ने दियें हैं....हजार रुपये जो तूने आज कपड़े भेजे ना उसके और हजार रुपये अंडवास और दस झबलो के लिए....उन्होंने तेरे काम की बहोत बहोत सरहाना की हैं!!!!उन्हें बहुत पसंद आया तेरा भेजा हुआ सामान...!!!


अररररे वाह....!!!!!माँ देखा आपने????किसी की थोड़ी सी मदत करने का नतीजा!!!ख़ुशी से चहकता हुए गौरी ने कहा


हाँ बेटा!!!धाय माँ बोली


मैंने हमेशा तुम्हें और भईया को देखा हैं छोटे से छोटे काम को अति उत्साह से करते हुए...!!तुम्हारी ही तो सीख हैं माँ कि कोई भी काम छोटा या बड़ा होता और सच्चाई से किया काम...फलीभूत होता ही हैं....!!!!अब माँ इन पैसों से मैं एक सिलाई मशीन लाऊँगी और उसकी मदत से तरह तरह के कपड़े सिलाई करूँगी....अब हमारे दिन जरूर फिरेंगें......माँ तुम...मैं...और भईया हम तीनों काम करेंगे और देखना....एक दिन हम औरो को भी काम देने लगेंगें....!!!


देखना तुम मेरी पढ़ाई का खर्च मैं कितनी आसानी से निकालती हूँ अब.....मैं उन में से नहीं जो अपने खुद के खर्च के लिए भी घर वालों का मुँह ताकें.....अब मैं आप लोगों की जिम्मेदारी बराबर में बाँट सकती हूँ ...तुम दोनों ने कितनी तकलीफ़े उठा कर मुझे पढ़ाया हैं माँ .....मैं अच्छें से जानती हूँ ......अब मेरी बारी हैं .....जब तक मेरी परीक्षा का रिजल्ट नही आता मैं सिलाई का काम करूँगी और रिजल्ट आने के बाद मैं मेरी वकालत शुरू करूँगी...तुम देखना माँ ....अब हम कभी भी किसी चीज के लिए तकलीफ़ नहीं पाएंगें.....कभी नहीं...हमारी तकलीफ़ के दिन बीत गए भईया....तुम्हारी छोटी बहन तुम्हारे साथ खड़ी हैं हर कदम अब!!!


माँ....मैं ये पैसे भगवान के चरणों को छुआ कर लाती हूँ....!!!


धाय माँ और बिट्टू दोनों की आँखे गौरी की ख़ुशी देख  भर आई.....और दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा....और दोनों रोते रोते भी मुस्कुरा देते हैं ....!!!!


तीनों अपने अपने तरह से जिन्दगी की मुश्किलें आसान करने में लग जाते हैं....पर कहते हैं ना, जिन्दगी हर क़दम एक नई जंग हैं.....धाय माँ, गौरी और बिट्टू इन तीनों की जिन्दगी का असली संघर्ष तो शुरू होने वाला था......


और संघर्ष के जनक.....ठाकुर अखिलेश प्रतापसिंह......इस वक्त बड़ी हवेली में एक पाँच सितारा होटल का नक्शा खोल कर बैठे थें.....!!!!!


आगे क्या होगा....कल के भाग में


♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️

धन्यवाद....🙏🙏🙏


✍✍मौलिक एवं स्वरचित वर्षा अग्रवाल द्वारा....