#अंधेरे से उजाले की ओर....!!!
भोर के तारे संग,
उदित होतीं...मैं,
देख प्रकृति का
अल्हड़पन,
खिल उठतीं हूँ।। ।।
माटी की सौंधी महक से,
महक उठती....मैं,
सूरज की लालिमा संग,
दहक उठती हूँ ।। ।।
घड़ी के गज़र से,
पग पग मिलाती.... मैं,
आठों पहर सी,
सजग प्रहरी हूँ ।। ।।
हवा के गर्म थपेड़ो से,
पल पल झुलसती....मैं,
आस्था के बाजार में,
विरहणी नास्तिक हूँ ।। ।।
मेले और बाज़ारों में,
निपट अकेली...मैं,
दुनिया के मेले में,
एक मुसाफिर....हूँ।। ।।
कठपुतलियों सी,
नाचती...मैं,
कठपुतलियों की डोर,
कहाँ हैं, खोजती हूँ...।। ।।
काँटों भरी राहों पर,
चलती...मैं,
मंजिल की तलाश में,
भटकती हूँ.....।। ।।
अंधे से एक मोड़,
सा जीवन जीती.. मैं,
अंधेरे से उजाले की ओर,
खिंचती हूँ....।। ।।
थककर बैठ गई,
हूँ मैं.....
चलो अब एक,
अंतिम यात्रा करतीं हूँ।। ।।
✍✍नेहा चौधरी की क़लम से
🙏🙏🙏
अति सुन्दर
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