मैंने पूछा चाँद से,
बता तुझे किस बात का,
गुरूर है.....
तेरी इन नशीली किरणों में,
कैसे इतना सरूर हैं????
चाँद धीरे से मुस्कुराया,
किरणों के जाल को,
थोडा और फैलाया.....
बोला, ज़र्रे ज़र्रे में,
मुझसे ही नूर हैं.....
हर आशिक मेरे से,
जलता जरूर हैं......!!!!!!
मैंने पूछा चाँद से,
तू क्यूँ शैन् शैन्,
बढ़ता हैं......
कलाओं के खेल में,
क्यूँ, दुनिया को,
उलझाए रखता हैं?????
चाँद बादलों की ओट से,
थोड़ा निकल आया,
अपनें उजले से बदन पर,
थोड़ा इतराया,
धीरे धीरे बढ़ना ही,
जिन्दगी का दस्तूर है,
फिर भी तू इंसान,
ख़्वाहिशो के पीछे,
भागता जरूर हैं......
उलझा उलझा सा,
जीवन तेरा,
तुझे जीवन जीने का,
ना ढंग ना शऊर हैं.....
जो तेरा हैं ही नहीं,
करता उस पर गूरूर हैं!!!!!
चाँद ने कहा,
ना मेरा दायरा छोड़ा मैंने कभी,
ना चाँदनी पर अधिकार किया,
जो मिला सूरज से मुझे,
मैंने उसे स्वीकार किया.....
ना मैं रोज़ निकलता हूँ,
ना मैं रोज़ ढ़लता हूँ......
ना मुझें होड़ हैं किसी से.....
ना मैं अंधेरे से घबराता हूँ....
जो भी मिला मुझे,
उसमें मै खिल जाता हूँ,
तेरी तरह मृगमरीचिका ,
के पीछे, जीवन ना,
गँवाता हूँ .....!!!!!
समझाया चाँद ने फिर,
तूने मेरी चमक देखी,
जलते तन के दाग न देखें,
तूने मेरी शीतलता देखीं,
गरमी सहती बंजर भूमि न देखीं....
सूरज की किरणों से,
पहचान है मेरी,
यहीं किरणें,
काल का ग्रास बन जाती हैं.....
जब खुद होती हैं धरा पर,
मेरे पहचान, निगल जाती हैं......!!!!
दर्द मानव एक तू ही नहीं सहता,
बस तेरी तरह मैं किसी से नहीं कहता हूँ,
जीवन पर ग्रहण लगने का दर्द,
बस मैं ही समझ पाता हूँ......!!!!!!
✍✍नेहा चौधरी की क़लम से
🙏🙏🙏
Well done!
ReplyDeleteThanks alot...
DeleteThanks...🙏🙏🙏🙏
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