Monday, 29 June 2020
# एक लेखक का दर्द......
Sunday, 28 June 2020
और कुहासा छँट गया......
....और कुहासा छट गया ......
पापा....अब मैं वहाँ कभी नहीं जाऊँगी....!!!!पापा वो इंसान नहीं जल्लाद है....उसका परिवार भी उसके साथ है हर कदम.....उन्हें बहू नहीं सिर्फ नौकरानी चाहिए.....देखिये पापा....कितना मारा है.....अपनी पीठ पर उभरी हुई लकीरें दिखाती हुई तपस्या बोली....
हाए राम.....कैसे मारा है मेरी मासूम सी बच्ची को....अभी तो इसके हाथों की मेहंदी भी नहीं छूटी हैं.... बेटी के जख्मो को देख बिलखते हुए रमा जी ने कहा....
क्या ग़लती थी माँ मेरी जानती हो?????मैंने काम वाली बाई को दो रोटी ज्यादा दे दी थी....उसकी मासूम सी बच्ची के लिए.....और मेरी जेठानी ने देख लिया रोटी देते हुए.....सुबकते हुए तपस्या बोली.....माँ क्या मुझे इतना भी हक नही है????आप तो हमेशा कहती थी ना....अपने घर जाकर कुछ भी कर सकते हैं?????माँ क्या वो घर मेरा नहीं हैं?????माँ कौन सा है, "मेरा घर".....ये जहाँ से मैं विदा कर दी गयी हूँ या वो घर जहाँ ब्याह कर मैं गई हूँ......कौन सा है?????बताओं ना माँ......
दो रोटी ज्यादा देने पर मुझे जाने कितनी बातें सुना दी!!!सबके सामने जलील किया किया गया....और उस पर भी मन नहीं भरा तो बेल्ट बेल्ट से मारा.....सब देखते रहे माँ किसी ने नहीं रोका समीर को......माँ....मैं बाप के घर से नहीं लाई थी ना वो रोटियां ना मैं कमाती हूँ जो मुफ़्त में उड़ा रहीं हूँ माल.......माँ.....मुझे सबक सिखाने की जरूरत थी....इसीलिए बस बेल्ट से मारा गया और कल से एक दाना नहीं दिया गया......माँ अगर आज आप और पापा नहीं आते मिलनें तो मैं यूँ ही बिलखती रहतीं......
चुप हो जा बेटा......हम ने सपने मे भी नहीं सोंचा था राणावत परिवार इतना गिरा हुआ निकलेगा....वो तो पता नहीं आज मन बहुत बेचैन हो रहा था.....मुझे क्या पता था कि इस बेचैनी की वजह तू है.....
आज तक आपनें और पापा ने मुझे ऊँगली तक नहीं और उसने मुझे जानवरों की तरह मारा.....क्या अपनें मान सम्मान के लिए आवाज़ उठाना बदचलनी हैं?????क्यूँ मेरे सामने आप लोगों को इतना कोसा गया????क्या कमी रखी थी आप लोगों ने मेरी शादी में???जो माँगा वो दिया.....जानती हो माँ....दो वक्त की रोटी के बदले सुबह से शाम तक काम करो और उस पर भी उनका मन नहीं भरता तो पापड़...बड़ी.....और न जाने क्या-क्या करते चले जाओ.......मर मर के करने के बाद भी कभी तारीफ के दो बोल तक नहीं निकले उन लोगों के मुँह से कभी.....वो सब तो ठीक है माँ.....पर बिना ग़लती के इतना मारना....????
पापा.....प्लीज पापा....मुझे मत भेजना वहाँ वापस.....मैं इस घर की बेटी हूँ ना पापा.....जैसे भाई है वैसी ही मैं हूँ ना .....आप ने कभी मुझ में और साहिल मे फर्क नहीं किया......
तपस्या....बेटा तू कहीं नहीं जाएगी.....तू तेरे घर में रहेंगी.....हक से..... मैंने मेरी बेटी राणावत परिवार में ब्याही है उनकों बेची नहीं थी.....अब मैं समीर राणावत को समझाऊँगा कितनी बड़ी गलती की है उसने!!!!!
पर दुनिया क्या कहेगी???रमा जी बोली....
दुनिया के कहने के डर से बेटी को मरने नहीं छोड़ सकता......तपस्या भूल जा बेटा कि तेरी शादी हुई भी थी कभी???और कल से ही जुडिशियल एक्साम की तैयारी में लग जा.......उठ बेटा.....ये सोच तेरे शरीर मे एक छोटी सी फांस लगी थी....शादी नाम की....शादी जरूरी हैं पर शादी के नाम पर बर्बाद होना.....नहीं बेटा.....तेरा बाप इतना कमज़ोर नहीं है......जो तुझे जीवन भर के लिए रोने छोड़ दें........कहतें हुए प्रदीप जी ने तपस्या को गले से लगा लिया.....
और तपस्या की जिन्दगी पर छाया कुहासा छँट गया.......Saturday, 27 June 2020
अंधेरे से उजाले की ओर
#अंधेरे से उजाले की ओर....!!!
भोर के तारे संग,
उदित होतीं...मैं,
देख प्रकृति का
अल्हड़पन,
खिल उठतीं हूँ।। ।।
माटी की सौंधी महक से,
महक उठती....मैं,
सूरज की लालिमा संग,
दहक उठती हूँ ।। ।।
घड़ी के गज़र से,
पग पग मिलाती.... मैं,
आठों पहर सी,
सजग प्रहरी हूँ ।। ।।
हवा के गर्म थपेड़ो से,
पल पल झुलसती....मैं,
आस्था के बाजार में,
विरहणी नास्तिक हूँ ।। ।।
मेले और बाज़ारों में,
निपट अकेली...मैं,
दुनिया के मेले में,
एक मुसाफिर....हूँ।। ।।
कठपुतलियों सी,
नाचती...मैं,
कठपुतलियों की डोर,
कहाँ हैं, खोजती हूँ...।। ।।
काँटों भरी राहों पर,
चलती...मैं,
मंजिल की तलाश में,
भटकती हूँ.....।। ।।
अंधे से एक मोड़,
सा जीवन जीती.. मैं,
अंधेरे से उजाले की ओर,
खिंचती हूँ....।। ।।
थककर बैठ गई,
हूँ मैं.....
चलो अब एक,
अंतिम यात्रा करतीं हूँ।। ।।
✍✍नेहा चौधरी की क़लम से
🙏🙏🙏
मैंने पूछा चाँद से
मैंने पूछा चाँद से,
बता तुझे किस बात का,
गुरूर है.....
तेरी इन नशीली किरणों में,
कैसे इतना सरूर हैं????
चाँद धीरे से मुस्कुराया,
किरणों के जाल को,
थोडा और फैलाया.....
बोला, ज़र्रे ज़र्रे में,
मुझसे ही नूर हैं.....
हर आशिक मेरे से,
जलता जरूर हैं......!!!!!!
मैंने पूछा चाँद से,
तू क्यूँ शैन् शैन्,
बढ़ता हैं......
कलाओं के खेल में,
क्यूँ, दुनिया को,
उलझाए रखता हैं?????
चाँद बादलों की ओट से,
थोड़ा निकल आया,
अपनें उजले से बदन पर,
थोड़ा इतराया,
धीरे धीरे बढ़ना ही,
जिन्दगी का दस्तूर है,
फिर भी तू इंसान,
ख़्वाहिशो के पीछे,
भागता जरूर हैं......
उलझा उलझा सा,
जीवन तेरा,
तुझे जीवन जीने का,
ना ढंग ना शऊर हैं.....
जो तेरा हैं ही नहीं,
करता उस पर गूरूर हैं!!!!!
चाँद ने कहा,
ना मेरा दायरा छोड़ा मैंने कभी,
ना चाँदनी पर अधिकार किया,
जो मिला सूरज से मुझे,
मैंने उसे स्वीकार किया.....
ना मैं रोज़ निकलता हूँ,
ना मैं रोज़ ढ़लता हूँ......
ना मुझें होड़ हैं किसी से.....
ना मैं अंधेरे से घबराता हूँ....
जो भी मिला मुझे,
उसमें मै खिल जाता हूँ,
तेरी तरह मृगमरीचिका ,
के पीछे, जीवन ना,
गँवाता हूँ .....!!!!!
समझाया चाँद ने फिर,
तूने मेरी चमक देखी,
जलते तन के दाग न देखें,
तूने मेरी शीतलता देखीं,
गरमी सहती बंजर भूमि न देखीं....
सूरज की किरणों से,
पहचान है मेरी,
यहीं किरणें,
काल का ग्रास बन जाती हैं.....
जब खुद होती हैं धरा पर,
मेरे पहचान, निगल जाती हैं......!!!!
दर्द मानव एक तू ही नहीं सहता,
बस तेरी तरह मैं किसी से नहीं कहता हूँ,
जीवन पर ग्रहण लगने का दर्द,
बस मैं ही समझ पाता हूँ......!!!!!!
✍✍नेहा चौधरी की क़लम से
🙏🙏🙏
Friday, 26 June 2020
सुनो कहानी
भविष्य की कहानी,
वर्तमान की जुबानी.....
बातें कुछ बिते हुए पलों की,
खट्टी मीठी यादों की निशानी......
भविष्य की कहानी,
स्वपनिल सपनों की जुबानी,
जिसमें हैं कोशिशें,
हार और जीत की निशानी......
भविष्य की कहानी,
आँखो से बहते पानी की जुबानी,
जिसमें हैं सिसकतें से पल,
हार कर बिलख रहे,
हौसलों की परेशानी .....
भविष्य की कहानी,
किस्मत की जुबानी,
दाग लगे हुऐ,
किस्मत पर और,
सिलवटें भरी हुई पेशानी......
भविष्य की कहानी,
मेरी जुबानी,
लौट के न आने वाले,
पलों की रवानी,
करूँगी विध्वंस से सृजन,
कमान हैं यें चढ़ानी.....
भविष्य की कहानी,
जिन्दगी की जुबानी,
कहती हैं जो,
हार न मान,
आगे बढ़ता जा,
आएगी रूत सुहानी.....
✍✍नेहा चौधरी की क़लम से
🙏🙏🙏
Sunday, 21 June 2020
❤❤हर वक्त तेरे साथ❤❤
Friday, 19 June 2020
🤝🤝एक मुलाकात जरूरी है
Tuesday, 16 June 2020
👐मेहंदी के रंग
🙏🙏एक अकेला इंसान 🙏🙏
🙏🙏एक अकेला इंसान🙏🙏
आज सृष्टि ने,
मचाया है, घमासान,
कहीं समंदर उफन रहा,
तो कही,गरजा है, आसमान....
क्या तेरी मर्जी है, मालिक,
रह जाए, बस.....
एक आखरी इंसान?????
कहीं दुश्मनों ने,
बिछाई है बिसात.....
कहीं महामारी से,
कर रहे दो दो हाथ.....
साँसों की डोर है,
टूटने बेकरार.....
बोल ..दो जहां के मालिक,
क्या चैन आ जाएंगा तुझे,
जब रह जाऐंगे फरियाद में,
उठे बस दो हाथ......
कैसी यें खींच तान हैं,
किस बात का अभिमान है,
उड रहें हैं आसमान में,
आखरी मंजिल तो,
शमशान हैं....
क्या पा रहा इंसान,
कर के यें नुकसान...
है, चहुँ ओर रूदन.....
दस्तक मौत की,
कर अनसुनी,
है खुद में ही मग्न......
नापाक इरादें मानव तेरे,
उजाड़ रहा तू,
तेरे ही रैन बसेरे,
उजलों में भटक,
बाँट रहा अंधेरे,
हैं, अंजाम से,
अंजान.....
कोई न होगा तेरे साथ,
रह जाएगा अकेला,
एक इंसान जोड़े हाथ.....
विध्वंस यें हर ओर का,
बुला रहा नादान,
सारी सृष्टि रो पड़ेगी,
रह जाएगा अकेला,
एक नाशुक्रा इंसान......!!!!!!







