Monday, 29 June 2020

# एक लेखक का दर्द......

#एक लेखक का दर्द.....

दर्द का दरिया,
अक्सर आँखो से बहता है,
मासूम सा दिल,
जाने कितनी चोट सहता है....

लुट के ले गए,
उस सौगात को,
जो हमारा था ही नहीं,

जो हमने सुना,
खामोशी से,
किसी ने कभी कहा ही नहीं.....

उन रास्तों पर,
जाती हैं नजरें.....
जहाँ से कोई आता ही नहीं.....

सवाल सी उठी हैं,
एक चिंगारी.....
जवाब कोई कहीं से आता ही नहीं.....

एक सोंच से निकलता,
हैं, जीवन...
एक सोंच पें ठहरा जाता ही नहीं......

गुज़रते हैं उन बस्तीयों,
से अक्सर.....
जिनमें कोई झाँकता तक नहीं......

पागल कहलाती हूँ,
जमाने में,
समझदारो का साथ रास आता ही नहीं....

मेरी दुनिया शब्दों,
में मेरे,
बहरी दुनिया से मुझे कोई वास्ता ही नहीं......

एक पहचान है,
गुमनाम सी,
शौहरत से मेरा दूर तक कोई राब्ता नहीं....!!!!!  

✍✍नेहा चौधरी की क़लम से 
 🙏🙏

Sunday, 28 June 2020

और कुहासा छँट गया......

            ....और कुहासा छट गया ......

पापा....अब मैं वहाँ कभी नहीं जाऊँगी....!!!!पापा वो इंसान नहीं जल्लाद है....उसका परिवार भी उसके साथ है हर कदम.....उन्हें बहू नहीं सिर्फ नौकरानी चाहिए.....देखिये पापा....कितना मारा है.....अपनी पीठ पर उभरी हुई लकीरें दिखाती हुई तपस्या बोली....

हाए राम.....कैसे मारा है मेरी मासूम सी बच्ची को....अभी तो इसके हाथों की मेहंदी भी नहीं छूटी हैं.... बेटी के जख्मो को देख बिलखते हुए रमा जी ने कहा....

क्या ग़लती थी माँ मेरी जानती हो?????मैंने काम वाली बाई को दो रोटी ज्यादा दे दी थी....उसकी मासूम सी बच्ची के लिए.....और मेरी जेठानी ने देख लिया रोटी देते हुए.....सुबकते हुए तपस्या बोली.....माँ क्या मुझे इतना भी हक नही है????आप तो हमेशा कहती थी ना....अपने घर जाकर कुछ भी कर सकते हैं?????माँ क्या वो घर मेरा नहीं हैं?????माँ कौन सा है, "मेरा घर".....ये जहाँ से मैं विदा कर दी गयी हूँ या वो घर जहाँ ब्याह कर मैं गई हूँ......कौन सा है?????बताओं ना माँ......

दो रोटी ज्यादा देने पर मुझे जाने कितनी बातें सुना दी!!!सबके सामने जलील किया किया गया....और उस पर भी मन नहीं भरा तो बेल्ट बेल्ट से मारा.....सब देखते रहे माँ किसी ने नहीं रोका समीर को......माँ....मैं बाप के घर से नहीं लाई थी ना वो रोटियां ना मैं कमाती हूँ जो मुफ़्त में  उड़ा रहीं हूँ माल.......माँ.....मुझे सबक सिखाने की जरूरत थी....इसीलिए बस बेल्ट से मारा गया और कल से एक दाना नहीं दिया गया......माँ अगर आज आप और पापा नहीं आते मिलनें तो मैं यूँ ही बिलखती रहतीं......

चुप हो जा बेटा......हम ने सपने मे भी नहीं सोंचा था राणावत परिवार इतना गिरा हुआ निकलेगा....वो तो पता नहीं आज मन बहुत बेचैन हो रहा था.....मुझे क्या पता था  कि इस बेचैनी की वजह तू है.....

आज तक आपनें और पापा ने मुझे ऊँगली तक नहीं और उसने मुझे जानवरों की तरह मारा.....क्या अपनें मान सम्मान के लिए आवाज़ उठाना बदचलनी हैं?????क्यूँ मेरे सामने आप लोगों को इतना कोसा गया????क्या कमी रखी थी आप लोगों ने मेरी शादी में???जो माँगा वो दिया.....जानती हो माँ....दो वक्त की रोटी के बदले सुबह से शाम तक काम करो और उस पर भी उनका मन नहीं भरता तो पापड़...बड़ी.....और न जाने क्या-क्या करते चले जाओ.......मर मर के करने के बाद भी कभी तारीफ के दो बोल तक नहीं निकले उन लोगों के मुँह से कभी.....वो सब तो ठीक है माँ.....पर बिना ग़लती के इतना मारना....????

पापा.....प्लीज पापा....मुझे मत भेजना वहाँ वापस.....मैं इस घर की बेटी हूँ ना पापा.....जैसे भाई है वैसी ही मैं हूँ ना .....आप ने कभी मुझ में और साहिल मे फर्क नहीं किया......

तपस्या....बेटा तू कहीं नहीं जाएगी.....तू तेरे घर में रहेंगी.....हक से..... मैंने मेरी बेटी राणावत परिवार में ब्याही है उनकों बेची नहीं थी.....अब मैं समीर राणावत को समझाऊँगा कितनी बड़ी गलती की है उसने!!!!!

पर दुनिया क्या कहेगी???रमा जी बोली....

दुनिया के कहने के डर से बेटी को मरने नहीं छोड़ सकता......तपस्या भूल जा बेटा कि तेरी शादी हुई भी थी कभी???और कल से ही जुडिशियल एक्साम की तैयारी में लग जा.......उठ बेटा.....ये सोच तेरे शरीर मे एक छोटी सी फांस लगी थी....शादी नाम की....शादी जरूरी हैं पर शादी के नाम पर बर्बाद होना.....नहीं बेटा.....तेरा बाप इतना कमज़ोर नहीं है......जो तुझे जीवन भर के लिए रोने छोड़ दें........कहतें हुए प्रदीप जी ने तपस्या को गले से लगा लिया.....

और तपस्या की जिन्दगी पर छाया कुहासा छँट गया.......














Saturday, 27 June 2020

अंधेरे से उजाले की ओर

         #अंधेरे से उजाले की ओर....!!!

भोर के तारे संग,
उदित होतीं...मैं,
देख प्रकृति का
अल्हड़पन,
खिल उठतीं हूँ।।  ।।

माटी की सौंधी महक से,
महक उठती....मैं,
सूरज की लालिमा संग,
दहक उठती हूँ ।। ।।

घड़ी के गज़र से,
पग पग मिलाती.... मैं,
आठों पहर सी,
सजग प्रहरी हूँ ।। ।।

हवा के गर्म थपेड़ो से,
पल पल झुलसती....मैं,
आस्था के बाजार में,
विरहणी नास्तिक हूँ ।। ।।

मेले और बाज़ारों में,
निपट अकेली...मैं,
दुनिया के मेले में,
एक मुसाफिर....हूँ।। ।।

कठपुतलियों सी,
नाचती...मैं,
कठपुतलियों की डोर,
कहाँ हैं, खोजती हूँ...।। ।।

काँटों भरी राहों पर,
चलती...मैं,
मंजिल की तलाश में,
भटकती हूँ.....।। ।।

अंधे से एक मोड़,
सा जीवन जीती.. मैं,
अंधेरे से उजाले की ओर,
खिंचती हूँ....।। ।।

थककर बैठ गई,
हूँ मैं.....
चलो अब एक,
अंतिम यात्रा करतीं हूँ।। ।।

✍✍नेहा चौधरी की क़लम से

🙏🙏🙏



मैंने पूछा चाँद से




मैंने पूछा चाँद से,
बता तुझे किस बात का,
गुरूर है.....
तेरी इन नशीली किरणों में,
कैसे इतना सरूर हैं????

चाँद धीरे से मुस्कुराया,
किरणों के जाल को,
थोडा और फैलाया.....
बोला, ज़र्रे ज़र्रे में,
मुझसे ही नूर हैं.....
हर आशिक मेरे से,
जलता जरूर हैं......!!!!!!

मैंने पूछा चाँद से,
तू क्यूँ शैन् शैन्,
बढ़ता हैं......
कलाओं के खेल में,
क्यूँ, दुनिया को,
उलझाए रखता हैं?????

चाँद बादलों की ओट से,
थोड़ा निकल आया,
अपनें उजले से बदन पर,
थोड़ा इतराया,
धीरे धीरे बढ़ना ही,
जिन्दगी का दस्तूर है,
फिर भी तू इंसान,
ख़्वाहिशो के पीछे,
भागता जरूर हैं......
उलझा उलझा सा,
जीवन तेरा,
तुझे जीवन जीने का,
ना ढंग ना शऊर हैं.....
जो तेरा हैं ही नहीं,
करता उस पर गूरूर हैं!!!!!

चाँद ने कहा,
ना मेरा दायरा छोड़ा मैंने कभी,
ना चाँदनी पर अधिकार किया,
जो मिला सूरज से मुझे,
मैंने उसे स्वीकार किया.....
ना मैं रोज़ निकलता हूँ,
ना मैं रोज़ ढ़लता हूँ......
ना मुझें होड़ हैं किसी से.....
ना मैं अंधेरे से घबराता हूँ....
जो भी मिला मुझे,
उसमें मै खिल जाता हूँ,
तेरी तरह मृगमरीचिका ,
के पीछे,  जीवन ना,
गँवाता हूँ .....!!!!!

समझाया चाँद ने फिर,
तूने मेरी चमक देखी,
जलते तन के दाग न देखें,
तूने मेरी शीतलता देखीं,
गरमी सहती बंजर भूमि न देखीं....
सूरज की किरणों से,
पहचान है मेरी,
यहीं किरणें,
काल का ग्रास बन जाती हैं.....
जब खुद होती हैं धरा पर,
मेरे पहचान, निगल जाती हैं......!!!!

दर्द मानव एक तू ही नहीं सहता,
बस तेरी तरह मैं किसी से नहीं कहता हूँ,
जीवन पर ग्रहण लगने का दर्द,
बस मैं ही समझ पाता हूँ......!!!!!!

✍✍नेहा चौधरी की क़लम से

🙏🙏🙏

  



Friday, 26 June 2020

सुनो कहानी

भविष्य की कहानी,
वर्तमान की जुबानी.....
बातें कुछ बिते हुए पलों की,
खट्टी मीठी यादों की निशानी......

भविष्य की कहानी,
स्वपनिल सपनों की जुबानी,
जिसमें हैं कोशिशें,
हार और जीत की निशानी......

भविष्य की कहानी,
आँखो से बहते पानी की जुबानी,
जिसमें हैं सिसकतें से पल,
हार कर बिलख रहे,
हौसलों की परेशानी .....

भविष्य की कहानी,
किस्मत की जुबानी,
दाग लगे हुऐ,
किस्मत पर और,
सिलवटें भरी हुई पेशानी......

भविष्य की कहानी,
मेरी जुबानी,
लौट के न आने वाले,
पलों की रवानी,
करूँगी विध्वंस से सृजन,
कमान हैं यें चढ़ानी.....

भविष्य की कहानी,
जिन्दगी की जुबानी,
कहती हैं जो,
हार न मान,
आगे बढ़ता जा,
आएगी रूत सुहानी.....

✍✍नेहा चौधरी की क़लम से

🙏🙏🙏



Sunday, 21 June 2020

❤❤हर वक्त तेरे साथ❤❤

कहाँ से वो वक्त लाँऊ,
जो सिर्फ तेरे साथ हो,
कैसे से वो पल सजाँऊ,
जिसमें सिर्फ तेरी बात हो......

कुछ पलों में बन गया,
सदियों का रिश्ता,
कैसे इस रिश्ते पर,
तेरे नाम की मुहर लगाँऊ.......

पलकों के साये में,
हैं बिन देखे ख्वाब,
कैसे हर तसव्वुर में,
ख्वाब तेरा ही सजाँऊ......

रूठ गया वक्त,
जब से तुम गयें,
कैसे तुम्हें मनानें,
आवाज़ मैं लगाऊँ.....

कंगन, बिंदी, झुमके,
हो गयें सूने सूने, 
कैसे वो श्रृंगार करूँ,
जिससें तुझे रीझाँऊ......

रूठने की तुम्हारी,
अदा हैं निराली,
कैसे तुम्हें मैं,
मनाना सिखाँऊ.......

वक्त बेवक्त तक़रार,
करते हो तुम,
कैसे तुम्हें वक्त बेवक्त,
प्यार करना सिखाँऊ .......

हद में रहना,
कसुर है, इश्क़ में,
कैसे तुम्हें हर बंधन से,
आजाद मै कराँऊ.......

खुशबू तेरे नाम की,
बिखरी हैं, हर ओर......
कैसे तेरी खुशबू से,
प्यार मैं मेरा महकाऊँ.......

साँस के हर तार में,
बस नाम हैं, तेरा,
कैसे तेरे वक्त पर,
मेरे नाम के पहरे लगाँऊ.......

वक्त की बंदिश से परे,
कैसे..हर वक्त तेरे साथ.....बिताऊँ.....!!!!!!

✍✍नेहा चौधरी की क़लम से  🙏🙏




Friday, 19 June 2020

🤝🤝एक मुलाकात जरूरी है

चूड़ी की खनक,
बिंदीयाँ की चमक,
बोझिल सी पलक,
दिल की कसक,
मिलने तुमसे,
हो रही बेकरार,
एक मुलाकात जरूरी है यार.....

सावन की पहली फुहार,
सर्दी की धूप सा,
चमकता श्रृंगार,
ओस की बूंदों सा,
यौवन का भार,
तुमसे करते हैं, मनुहार,
एक मुलाकात जरूरी है यार......

तुम बिन प्यार अधूरा,
तुम बिन ख्वाब कोई,
न हो कभी पूरा,
तुम बिन बाँहों का,
हार अधूरा,
कर दो मुझे,
अब तुम पूरा.....
एक मुलाकात के लिए दिल,
बेकरार है मेरा......

रात के सुकून सा,
बेहद एक जुनून सा,
प्यार यें मासूम सा,
कठोर किसी कानून सा,
करता हैं, फरियाद,
एक बार करो हमे भी याद....
बरस जाओं बनके बरसात,
कर लो हमसे एक मुलाकात.....

तेरी महफ़िल,
मेरा विराना,
मेरा हर पल,
तुझे मनाना,
रूठ कर तेरा,
यूँ चले जाना,
मिलें हुए हमें,
बीत गया एक ज़माना...
मनाते हैं तुझे,
बार बार,
एक मुलाकात जरूरी है यार...!!!!!


✍✍नेहा चौधरी की क़लम से  🙏🙏

Tuesday, 16 June 2020

👐मेहंदी के रंग

मेहंदी से जले जब,
गोरे हाथ,
रोशन होते है,
जाने कितने ख्वाब...

लांघ दहलीज बाबुल की,
जाती है, पिया के देश,
छोड़, माँ का आँचल,
गुड्डे-गुड़िया, पिता
भाई-बहन, का स्नेह......

दुनिया की अलबेली रीत,
वो निभाती हैं, 
नाजों से पाली, लाड़ो,
पराई हो जाती है.....

छुईमुई सी काया वो,
हर भार उठाती है,
कर्तव्य पथ पर बिना रुके,
पग पग बढ़ती जाती है......

मेहंदी के सुर्ख,
लाल रंग में, रंगी
प्यार के रंग में,
रंग जाती है.....
फिर क्यूँ वो जिन्दगी भर,
दो प्यार के बोल को, 
तरस जाती है.....????

मेहंदी के कच्चे रंग,
रखती हैं पग पग संग,
महक से मेहंदी की,
ज़रा ज़रा महकाती हैं.....
फिर क्यूँ वो पराई जाई ही,
जीवन भर कहलाती हैं....?????

मेहंदी की आड़ी तिरछी,
रेखाओं में,
चोट भरोसे को लगी,
बिसराती हैं,
जाने कितने ख्वाब सजे थे,
खुरचन उनकी उतारती है......!

मेहंदी के रंगों में रंगी,
जंग जीवन की,
लड़ती जाती है,
सात फेरो के वचनों का,
चिता की अग्नि तक,
मान निभाती है,
फिर क्यूँ वो जिन्दगी भर,
हर किसी से मान अपना बचाती है????

पीड़ा नारी मन की,
क्या कभी समझी जाती है????
मेहंदी का लाल रंग,
चिता की राख बन,
न जाने कब माथे पर लग जाती है.....!!!!!!

✍✍नेहा चौधरी की क़लम से ✍✍










🙏🙏एक अकेला इंसान 🙏🙏

🙏🙏एक अकेला इंसान🙏🙏 

आज सृष्टि ने,
मचाया है, घमासान,
कहीं समंदर उफन रहा,
तो कही,गरजा है, आसमान....
क्या तेरी मर्जी है, मालिक,
रह जाए, बस.....
एक आखरी इंसान?????

कहीं दुश्मनों ने,
बिछाई है बिसात.....
कहीं महामारी से,
कर रहे दो दो हाथ.....
साँसों की डोर है,
टूटने बेकरार.....
बोल ..दो जहां के मालिक,
क्या चैन आ जाएंगा तुझे,
जब रह जाऐंगे फरियाद में,
उठे बस दो हाथ......

कैसी यें खींच तान हैं,
किस बात का अभिमान है,
उड रहें हैं आसमान में,
आखरी मंजिल तो,
शमशान हैं....
क्या पा रहा इंसान,
कर के यें नुकसान...
है, चहुँ ओर रूदन.....
दस्तक मौत की,
कर अनसुनी,
है  खुद में ही मग्न......

नापाक इरादें मानव तेरे,
उजाड़ रहा तू,
तेरे ही रैन बसेरे,
उजलों में भटक,
बाँट रहा अंधेरे,
हैं, अंजाम से,
अंजान.....
कोई न होगा तेरे साथ,
रह जाएगा अकेला,
एक इंसान जोड़े हाथ.....

विध्वंस यें हर ओर का,
बुला रहा नादान,
सारी सृष्टि रो पड़ेगी,
रह जाएगा अकेला,
एक नाशुक्रा इंसान......!!!!!!

✍✍नेहा चौधरी की क़लम से ✍✍

Sunday, 14 June 2020

🙏🙁एक शहीद की बेवा

हाथों की मेहंदी,
माथे का कुंकुम,
सिंदूरी माँग,
पायल की रूनझुन,
सुहाग की निशानी,
यें सारी,
कर रहीं हूँ,
तेरी चिता को अर्पण,
एक शहीद की,
पत्नी हूँ मैं,
तेरा नाम ही है,
अब मेरा दर्पण......

चूड़ीयों की खनक से,
कल तक खिलखिलाता था जो घर,
आज वहाँ पर हर कोना है,
दूर दूर तक है बंजर.....

रूठना मनाना,
प्रेम में तेरे खो जाना,
कभी न लौट के आएँगा, 
बीता हुआ वो, ज़माना.....

इल्जाम कैसे दे दूँ, तुम को,
तुम बेवफा नहीं,
एक कर्तव्य तेरा,
था सर्वोपरि,
उसके आगें तुने,
कभी कुछ देखा नहीं......

तेरी शहादत अब,
मान है, मेरा.....
कहलाती हूँ,
शहीद की पत्नी,
यें एहसान है, तेरा.....

भारत माँ के रक्षक तुम को,
आज वचन यें, देती हूँ,
तेरे बलिदान की लाज रखूँगी,
कण कण इस धरा का,सहेजूँगी....

सुन रहे हो दुनिया वालो,
हो सके तो इस धरा को संभालो,
जान गंवाते है, न जाने कितनी,
माँओ के लाल,
तब तुम सब रह पाते हो, खुशहाल....

व्यर्थ ना करो कुर्बानियां,
जाने कितनों की,
उजड़ी है दुनिया....
खून से सिंची इस बगिया को,
गुलजार तुम बना दो,
न हो फिर कोई,
सुहागन बेवा,
प्रेम इस धरा पर,
इतना फैला दो......!!!!

✍✍नेहा चौधरी की क़लम से  🙏🙏







🤚🤚एक और निर्भया बन गई

एक और निर्भया बन गई....


भरोसा कर के..
लो एक और बली चढ़ गई...
दुनिया को एक और...
निर्भया मिल गई  ...

क्या गलती थी उसकी???
बोलो?
क्यु वो जिंदा जला दी गई ....
किसी का क्या गया???
हा, दुनिया और एक निर्भया मिल गई....

क्या वो किसी की दुनिया न थी??
क्या सिर्फ वो एक मांस की गठरी थी??
क्यु उस की चीखे,
एक बार फिर अनसुनी हो गई?
लो एक और नई कहानी हो गई  ....

वो कहते है,
अश्लील थे कपडे उसके,
फिर क्यु तीन महीने की बच्ची ...
बस औरत हो गई?
चाचा ने ऐसा खेला खेल,
वो एक एक साँस को,
मोहताज हो गई....

क्या मिला तुमको,
उसको निर्भया बना के,
छलनी छलनी कर वजूद उसका,
उसको जिंदा जला के?

लो एक माँ की कोख,
आज फिर,
बदनाम हो उठी,
पुरूष तुम जैसे,
पैदा करके,
हर कोख,
चित्कार कर उठी...

माँ थी, वो बहन थी, वो बेटी थी,
एक बार फिर सरे बाजार,
इंसानियत,
शर्मसार हो उठी,
लो एक और निर्भया,
बली चढ़ गई...।

✍✍नेहा चौधरी की क़लम से 🙏🙏

💘💘बावरा मन 💘💘

धरा पर गिरती बूंदों को देख,
मन यें महक उठा,
रोम रोम पुलकित हुआ देख,
काली मतवारी घटा......

सौंधी सी खुशबू मिट्टी की,
इत्र सी बिखर गई,
प्रकृति यें प्यासी सी,
बूँद पड़ी और सिहर उठी.....

तपती सी देह पर,
प्रेम की छुअन,
लाज से सिमटा जाए रे,
बावरा....यें मन.....

धरा पर छाएँ हैं, नभ,
मैं व्याकुल अधीर सी,
जल बन तुम,
बरसोंगें कब.....

बावरा यें मन,
करे है पुकार...
चले पी के पास,
करके सोलह श्रृंगार.....

जोगन बन गई,
इंतजार में तेरे,
देखने तुम्हे,
नैन तरसे मेरे.....

बावरे इस मन में,
बस प्रेम है, तुम्हारा,
एक तेरे मोह में,
सारा जहां तुम पें है, वारा.....!!!!!!

✍✍नेहा चौधरी की क़लम से 🙏🙏

  






Thursday, 11 June 2020

👁👁क्या देखा आँखो ने????

आज आँखो ने,
एक भयानक मंज़र देखा,
खुशियों से दूर,
गम का समंदर देखा.....

साँसों की डोर तोड़ता,
एक पल का बवंडर देखा,
जिन्दगी को मौत बनाता, 
मौत का वो खंजर देखा....

पैसो के टीलों पर खड़े,
लोगों ने,
दुआओं की रेत पर,
संभलकर देखा....

नाकाम कदमों को,
हिम्मत के बल पर,
इस पार से,
उस पार देखा.....

क़दम रुकते ना हैं,
जिनके,
उन को,
लाचार...बेजार  देखा....

मौत की दुआएं माँगते थे,
जो किसी और की,
औरों के काँधो पर उन्हें,
सवार देखा.....

डरता ना था,
जो इंसान किसी से,
उसने आज,
खौफ का यें कहर देखा.....

शांत निर्मल प्रकृति के,
उग्र होने पर,
विध्वंस का,
यें महासमर देखा...!!!!! 

✍✍नेहा चौधरी की क़लम से ✍✍

Wednesday, 10 June 2020

😘😘प्यारा बचपन😘😘

     😘😘प्यारा बचपन🤗🤗

सख्त़ सी इस जिंदगी में,
फक्त़ एक जो है, अपना... वो बचपन..!!!

तख्त़ो-ताज कदमों में झुकाता,
कम्बख़त सौ सौ बार गिर,
फिर संभल जाता, वो‌ बचपन.....

मासूम से चेहरे पर,
तबस्सुम का नूर....
धूल भरे कपड़ो में,
झूमता सा सरूर....वो बचपन...!!!!

न दुनियादारी की रीत जाने,
न ऊंच नींच पहचानें.....
कभी न खत्म होने वाला,
बातों का पुलिंदा....वो बचपन....!!!!

ख्वाहिश...न सिक्कों की,
तम्न्ना...न महलों की,
मां की गोद और 
बाबा के कांधों पर,
दुनिया लूट आए.....वो बचपन...!!!!

तिलिस्म पुरानी चीजों का,
ख़ज़ाना गुड्डे गुड़ियों का,
बना दी जिसने,
एक पोटली यादों की....वो बचपन....!!!!

न खोने की चिंता,
न पाने की ज़िद्द,
सुकूनं भरी नींद और,
कसके लगी भूख....वो बचपन....!!!!

इंद्रधनुष के रंग,
आंखों में समाता....
हर एक किलकारी पर,
रोते को हंसाता.....वो बचपन....!!!!

हर पल बड़े होने की,
दुआएं मांगता....
और बड़े होने पर,
बचपन जीने को तरस जाता....
कभी न लौट कर आने वाला.....वो बचपन....!!!!!

📝📝नेहा चौधरी की कलम से✍️✍️

🤚🤚अग्निपरीक्षा

अग्निपरीक्षा 


तड़ाक!!!!!!!!

जोर का थप्पड़ पड़ा सूरज के गाल पें.....

सूरज लडखडा कर पीछे हो गया..... उसने सोंचा भी नहीं था कमजोर सी दिखने वाली राधिका उस पर इस तरह हाथ उठाएंगी ......

हिम्मत कैसे हुई तेरी मुझे छूने की?????क्या समझा है, औरत को???? औरत सिर्फ भोगने के लिए नहीं हैं.....

साली.....सती सावित्री बनती है, तू खुद आई ना मेरे साथ.....तुझे भी तो मजा आ रहा था ना मेरी बातों का.....खूब हँसी आ रही थी ना.....पास बैठी थी मेरे....जरा सा छू लिया तो क्या बुरा किया...????

छी.....!!!! कितनी गिरी हुई सोंच है तुम्हारी.....साथ आई थी,क्योंकि एक ही रास्ता था....तुम्हारा और मेरा.....क्या पता था तुम इस हद तक गिर जाओगे.....!!!!!!दोस्त माना था मैंने तुम्हें.....और साथ आई थी तो बताओं क्या यें कोई एकांत जगह है?????? मेरी कौन सी बात से तुम्हें मेरी सहमती दिखीं??????हाँ, मैं तुम्हारे साथ हंसती बोलतीं थी तो बताओं क्या मैंने मूक निमंत्रण दिया तुम्हें????

क्यूँ सूरज??? तुम तो मेरे दोस्त हो ना??? फिर कैसे तुम्हारे मन में यें पाप आया....??तुम्हारे साथ मैं खुद को महफ़ूज समझतीं थी .....मुझे क्या पता था कि तुम ही भक्षक बनने तैयार हो..... तुम्हारे मन में ऐसा था, पता होता तो कभी तुम से बात नहीं करतीं.....

चलो तुम्हें अब समझाऊँ मैं क्या चाहती हूँ.......

हैलो....पुलिस स्टेशन....मैं राधिका माथुर....माॅल रोड से बात कर रही हूँ..... मेरे  साथ काम करने वाले सूरज मिश्रा ने  मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की है....आप प्लीज जल्दी यहाँ पर आ जाए.... थैंक्स सर....

हैलो....अर्धया जी .....मैं राधिका.....जी मिसेज सूरज.....सूरज के खिलाफ मैंने पुलिस मे शिकायत की है.... हाँ....सूरज ने मेरे साथ जबरदस्ती करने......आगे नहीं बोल पाई राधिका......रूलाई फूट पड़ी राधिका को ....

राधिका यें तुमने क्या कर दिया.....जिन्दगी  बरबाद कर दी मेरी.....

और अगर तुम अपने  मनसूबे में कामयाब हो जाते तो?????

बस सूरज....अभी इसी घड़ी से तुम्हारी अग्निपरीक्षा शुरू...... हमेशा एक औरत ही क्यूँ दे अग्निपरीक्षा कहतें हुए राधिका ने पुलिस की आती हुई  पीसीआर  वैन की तरफ़ इशारा किया.।।।।।




😟कैसे पुरुष हो तुम....????

धिक्कार हैं तुम पर,
तुम्हारी सोंच पर...
कैसे अमानुष हो गए,
छः साल की लाड़ो को,
बोटी बोटी नोच खा गए.....

क्या तुम्हारे दिल ने तुम्हें टोका नहीं??
क्या तुम्हारे जमीर ने तुम्हें ललकारा नहीं???
क्यूँ अंतःकरण की आवाज़,
सुनी अनसुनी कर,
अंधकार बन छा गए,
छः साल की लाड़ो को,
बोटी बोटी नोच खा गए .....

उस के कोमल अंगों में
कहा औरत को देख लिया?
उस की कोमल काया में,
ऐसा तुम को क्या मिला?
जो तुम उस में भेद भेद,
समा गए...
छः साल की लाड़ो को,
"औरत" तुम बना गए ....

क्या तुम ने स्त्री के गर्भ से जन्म नहीं लिया???
क्या तुम्हारे घर में स्त्री नाम का कोई 'सामान'नहीं???
क्यूँ, तुम नन्हीं सी उस जान को,
अंधा करके आ गए,
पाप अपना छुपा नें,
आँखे फोड़ कर आ गए!!!!

क्या तुम उसको बचा पाओगे???
उस की करूण पुकार को सुन पाओगे???
उसके माँ बाप के आंसुओं का सैलाब रोक पाओगें???

क्या तुम अमरत्व का वरदान ले के आए हो?
तुम्हारी 'करनी' के फल से,
क्या तुम अछूते रह जाओगे????
काश, सोचा होता तुमने परिणाम,
न बनता जीता जागता परिवार शमशान.....😟😟

✍✍नेहा चौधरी की क़लम से 📝📝

🙏🙏मौत के इस मैदान में, जीत जाएँगी जिन्दगी

//मौत के इस मैदान में, जीत जाएँगी जिन्दगी\\  

मौत के इस मैदान में, जीत जाएँगी जिन्दगी,
काटो भरी इस राह से,पार जाएंगी जिन्दगी....

माना, अभी घायल हैं,जान,
माना, पल पल हैं युग,समान,
माना, आशाँओं का धूमिल हैं,आसमान,
पर, इन सब से उबर जाएंगी जिन्दगी,
मौत के इस मैदान में, जीत जाएँगी जिन्दगी....

किसी की साजिश हैं,
या किसी की रंजिश,
किसी की ख्वाहिश हैं ,
या किसी की कोशिश,
"नेस्तनाबूत" ना होने देंगी,जहान
हर कीमत चुकाने तैयार हैं, जिन्दगी,
मौत के इस मैदान में, जीत जाएँगी जिन्दगी....

कही, पत्थरों की बरसात हैं,
कही, मौत से दो दो हाथ हैं,
कही, दूसरों का मैला ढोने,
तैयार हैं जिन्दगी, 
कही, औरो की जान बचाने
सड़कों पर तैनात हैं जिन्दगी,
मौत के इस मैदान में, जीत जाएँगी जिन्दगी....

कहीं, युद्ध का मंज़र हैं,
कही, खून का समंदर हैं,
कही, लाशों का ढेर हैं,
कही, अघोषित सा ये "समर" हैं,
चहुँ ओर के भयानक अन्धकार को भेद,
"रोशनी के झरोखे" से राह बनाएंगी, जिन्दगी,
मौत के इस मैदान में, जीत जाएँगी जिन्दगी ...

शतरंज की बाजी बिछी हैं,
शय और मात का खेल हैं,
मात देके हर बुराई को,
जीत के साथ मुस्कुराँएगी, जिन्दगी,
मौत के इस मैदान में, जीत जाएँगी जिन्दगी.....
हर दुखः से लड़, 
फिर "इंसानियत के सदके" , जाएँगी जिन्दगी 🤞🤞🙏🙏🤲🤲

✍✍नेहा चौधरी की क़लम से 📝📝

😊😊घर बैठी तो....!!!!!😘😘

जाने कितने खवाबों के अधूरा रहने का
था मलाल,
घर बैठी तो आया ख्याल...

यादों की संदूक से,
एक अधूरा ख्वाब निकला,
बनानी थी चूनरी गोटे वाली, 
संग सलमा सितारा...
जानें कितने युगों से संजोये रखा था सामान,
घर बैठी तो चूनरी मेरी छा गई,
बन आसमान....

घर बैठी तो, 
मैंने, एक कोना मन का, खाली पाया,
जिसमें था कभी,
रंगो से श्वेत पटल रंगने का सपना सजाया,
बिखर गए वो रंग सभी,
देखो उत्साह कैसा छाया,
घर बैठी तो,
इंद्रधनुष के रंगों से मैंने एक एक रंग चुराया....

घर बैठी तो आया ख्याल,
रचा जाए शब्दों का जाल,
अपने मन की आवाज़ को मैंने,
कविताओं में सजाया,
घर बैठी तो,
कलम की ताकत को थोडा और बढाया ....

घर बैठी तो आया ख्याल,
बचपन जी लूँ फिर से,
बचपन की वो निश्छल मुस्कान,
होठों पे सजा लूँ, फिर से,
घर बैठी तो हुआ ये हाल,
देखो गुड्डे-गुड़िया का फिर ब्याह रचाया,
और लाकडाउन की वजह से,
बस पाँच लोगों को बुलाया...
बिदाई में गुड़िया की मेरी,
रो रो के हुआ बुरा हाल....
घर बैठी तो किया जी भर धमाल .....

घर बैठी तो आया ख्याल,
भागम-भाग भरी जिन्दगी से,
था बुरा हाल,
घर बैठी तो मैंने, सूकून,
तन मन का पाया,
जो मिल ही नहीं पाता था,
वो वक्त, परिवार के साथ बिताया....
घर बैठी तो जिंदगी जीने का ढंग,
निराला पाया .....

घर बैठी तो हर घड़ी को मैंने, सारी खुशियों से सजाया....
घर बैठ मैंने, हर पल मे, सपनो को साकार रूप में पाया ....

✍✍नेहा चौधरी की क़लम से 📝📝

👩‍👧क़ीमती सीख👩‍👧

सुन लाडो मेरी,
एक बात तुझे बताती हूं,
इस दुनिया की निराली रीत से,
तुझे, रूबरु कराती हूं...!!!!

जब से तुम,
कोख में आई,
तब से हर पल तुम्हें,
बचाती हूं,
तेरे भाई को न ला,
दुनिया में
दोषी मैं,
कहलाती हूं....!!!!

सुन लाडो रानी,
जन्म पाया तुने नारी का,
जीवन की सीख,
बताती हूं,
कभी पिता, कभी भाई,
कभी पति, कभी संतान की,
आश्रित नारी,
कहलाती हैं.....!!!!

तेरे वजूद की परिभाषा,
पुरूषों से लिखी जाती हैं,
मौन स्वीकृति तेरी बिटिया,
दंभ उनके सहलाती हैं....!!!!

सुन लाडो मेरी,
तेरी मा‌ॅ॑....मैं,
जख्म तुझे दिखाती हूं,
औरत ही औरत की,
दुश्मन हैं,
कठोर.... ये सच भी,
बताती हूं....!!!!

देखें तुझे ना कोई,
हर नज़र से तुझे,
बचाती हूं,
दुधारी तलवार से,
कुछ बंधन,
ऐसे झूठे रिश्तों से,
तुझे बचाती हूं....!!!!

सुन लाड़ो,
स्वाभिमान को अपने बचाने,
नारी जब भी,
आवाज़ उठाती हैं,
दोगले लोगो के,
इस समाज में,
चरित्रहीन कहलाती हैं....!!!!

📝📝नेहा चौधरी की कलम से✍️✍️

🙏🙏साल 2020🙏🙏

एक ये साल दो हजार बीस,
झुका दिए इसने सबके शीश....
चारो ओर मातम हैं छाया,
स्वछंद विचरने वाला,
कारागार में घिर आया.....

मद में चूर हो,
यह विध्वंस तुने खुद है, कमाया....
दोष किसी को क्या दोगे,
तुने ही आमंत्रण दे,
इस घोर आपदा को हैं, बुलाया....

कैसे भुल गए,
अपनी करनी का लेखा जोखा,
एक तेरे लोभ से,
सारी सृष्टि पर,
संकट हैं छाया.....

मौन सृष्टि देख रहीं,
मौत का ये, मंज़र,
अपनों की मौत के करुण रुदन पे,
आकाश भी हैं, थर्राया.....

नित नए तरीके से,
मौत ने तांडव हैं, मचाया,
"खलक चबेना काल का",
चरितार्थ हो आया....

एक ये साल दो हजार बीस,
दो गज़ जमीन का इसने,
मोल है, समझाया,
कफ़न लपेटे मानव के भेष में,
मौत ने पैग़ाम हैं, भिजवाया....

एक ये साल दो हजार बीस,
जिंदगी की रफ्तार को हैं, 
जिसने थमाया....
और खुदा की इबादत का,
इक और मौका है, दिलाया....

एक ये साल दो हजार बीस,
दे रहा है ये, संदेश,
तज़ दें सर्वार्थ तेरा ओ बंदे,
बन्दगी हैं मनव जीवन,
प्रथम उद्देश्य...।।।।

📝📝नेहा चौधरी की कलम से✍️✍️

Tuesday, 9 June 2020

🌷🌷झूठा भ्रम🌷🌷

🌹🌹 झूठा भ्रम 🌹🌹

वजह चाहे कुछ भी हों,
तुम मेरे वजूद बन गए,
मेरे होने का...
तुम ही सबुत बन गए.....

हम तो आरज़ू कर रहे थें,
एक अपने की,
सबसे अज़ीज़ तुम मेरे,
सपने बन गए.....

लाख दुआएं मांगी थी, मैंने,
हर दुआ की तुम मेरी,
मुंह मांगी,
सौगात बन गए.....

कुछ कहना चाहती थी,
तुम से,
मेरी हर अनसुनी बात का,
तुम जवाब बन गए....

आशाओं की उड़ान,
तुम से मिलने, बेकरार है,
कभी पूरी ने होने वाली,
तुम मेरी इच्छा बन गए......

आसमां का चांद हों, तुम,
और ये चांद,
सिर्फ मेरा हैं,
ऐसे झूठें तुम,
मेरे भ्रम बन गए...!!!!!!


📝📝नेहा चौधरी की कलम से✍️✍️

🌷🌷इजहारे-ए- इश्क़🌷🌷

इश्क़ है तुमसे,
अब यें बयां करना है,
नज़रो से तेरे,
दिल में उतरना है.....

ता उम्र इतंजार किया तेरा,
अब तेरे बिना,
न एक पल,
गुज़र करना है.....

यादों के फूल जो,
महकाते थे दामन,
अब उन फूलों की महक से,
रोम रोम पाक करना है.....

रोज़े रखे हैं तुझसे,
जुस्तजू की आस में,
अब इन लबों को,
इफ्तांऱ करना है....

साक़ी का मयखाना,
पी गए सारा,
अब तेरी अदाओं से,
नशा करना है.....

उल्फ़त की जुंबा,
मगरुर हैं ज़ालिम,
अब इसी ज़ालिम के हाथों,
लबों को लबरेज करना है.....

ख़ामोश थे हम,
अब तलक,
अब हमें,
हाले दिल 
इज़हार तुम से करना है......!!!!!

📝📝नेहा चौधरी की कलम से✍️✍️

🌷🌷बेईमान इरादे🌷🌷

💓तेरी "सोहबत की ख्वाहिश ने ,
क्या से क्या बना दिया,
जान बेचने निकले थे, 
दिल ही बेईमान बना दिया....!!!

💓इस' फकीर को तेरी "जुस्तजू ने ,
क्या से क्या बना दिया,
माँग रहें थे "रहमत,
और देख सबसे "अमीर बना दिया....!!!

💓हम तो खोज रहे थे, 
रोशनी के "झरोखे,
तुमने तो "चश्मों चिरागो से,
ज़रा ज़रा जगमगा" दिय़ा...
क्या हमें बना दिया....!!!!

💓बड़े उसूल वाले थे हम,
एक तेरी आरज़ू नें,
सारे उसूलो को,
ताक़" पें रखवा दिया....
क्या से क्या हमें बना दिया....!!!!

💓राजे इश्क़" रखना था हमको,
धड़कनो नें शोर कर,
तुमको ही,
राजदार" बना दिया....
हाँ, तुमको ही सब बता दिया...!!!

💓हरारते दिल,
करने लगा हैं बगावत",
यें कैसा इल्जाम" तुमने,
लगवा दिया,
नेक इरादे दिल को "बेईमान इरादे" बना दिया ...!!!! 

📝📝नेहा चौधरी की क़लम से ✍✍

💔💔अस्तित्व.....????



#अस्तित्व.....????

एक दिन पूछा नदी से,
तु उग्र क्यूँ होती हैं,
शांत कल कल ही तो तु,
सदियों से बहती है....

नदी बोली शांत रहना,
पहचान है मेरी,
सहना सारे जख्मों को,
फितरत है, मेरी.....

इस दुनिया का,
दस्तूर इस क़दर,
जो चुप रहते है,
उन्हें कर देते दर-बदर.....

आँखों में,
आँसू आते हैं,
दुखः सहने वाले पर,
अक्सर आँसू पी जातें हैं......

जख्मों से जब दिल,
बेजार होता हैं,
दर्द के दरिया का,
रूप तुफान सा, 
इख़्तियार होता हैं.....

अपराधी जमाने को,
सजा देने,
तब उग्र बन जातीं हूँ,
रोक ज़माने के कदम,
अपने अस्तिव को,
बचाती हूँ......!!!!!!



✍✍नेहा चौधरी की क़लम से 📝📝...